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Wednesday 6 April 2016

तुमने कहा

तुमने
कहा
'मुझे सांवला रंग पसंद है '
मैंने
अपनी चादर ओढ़ा दी
तुम्हारे काँधे पे
जिसे ओढ़ कर
तुम सो गयी
फिर मैंने देखा
देर तक
चाँद को मुस्कुराते हुए
अंधेरी सर्द रातों में

मुकेश इलाहाबादी ------------

Friday 1 April 2016

दर असल

दर असल
जब मैं,
तुम्हे डांट रहा होता हूँ
तुम्हारी मासूम शैतानियों पे
जैसे
कविता लिखते वक़्त
तुम्हारा मेरे कान में
आँचल के कोने को
मुरेड के हलके से गुदगुदा जाना

या फिर
जब कभी
किताब के पन्नो में मशगूल होने पे 
तुम्हारा मुँह चिढ़ा के
चाय या कॉफी बनाने चल देना

और मेरा कहना
'क्या बेवकूफी है ?'

सच -
तब वो मेरी नाराज़गी नहीं
इक मीठा सा गुस्सा होता है
तुम्हारे प्रति

मुकेश इलाहाबादी ----------- 

दुनिया इतनी बड़ी नहीं


ये तो
तुम भी जानती हो,
दुनिया इतनी बड़ी नहीं
कि तुम हमसे
और हम तुमसे
मिल ही न पाएं
और,, इतनी छोटी भी नहीं
कि
हम तुम रोज़ रोज़ मिल सकें 
हाँ इतनी बड़ी ज़रूर है
जिसमे
शायद कभी किसी
कॉमन दोस्त के यहाँ
या किसी मॉल में
या कि किसी मेले में
या ट्रेन या बस में
सफर करते हुए
मुलाकात हो जाय
बस --- तब ,, तुम बस
ये मत करना पहचान के भी
न पहचानो
बोलना चाह के भी न बोलो कुछ
ऐसे में तुम
बस गर करना भी ऐसा तो
इतना भर करना
हौले से आँखों ही आँखों में ही सही
मुस्कुरा भर देना
हथेली को पीछे ले जा के
हौले से बॉय कर देना

ताकि तुम्हारे साथ का कोइ
तुम्हे ऐसा करते देख न पाये

बस
मैं खुश हो जाऊंगा
हमेशा हमेशा के लिए
बिलकुल वैसे ही
जैसे आप किसी फूल के पास जाएँ
फूल हौले से हिल के रह जाए
अपनी खुशबू के साथ
और,
बस जाए साँसों में खशबू सा
और यादों में बस जाए
एक नाज़ुक एहसास सा 

मुकेश इलाहाबादी ------------