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Sunday 30 June 2013

गम अपना खुद से उठाना सीख लिया

 
गम अपना खुद से उठाना सीख लिया
खुद से खुद को समझाना सीख लिया

कोई माझी कोई कश्ती पार नही जाती
खुद से खुद को पुल बनाना सीख लिया

सलीका पसंद लोग खुल के नही हंसते
लिहाजा हमने भी मुस्कुराना सीख लिया

बुतों के शहर मे शाइरी करने के लिये
खुद को भी पत्थर बनाना सीख लिया

खुद को चर्चा मे रखने के लिये मुकेष
खुद को मसखरा कहलाना सीख लिया

मुकेश  इलाहाबादी ....................

Saturday 29 June 2013

दुनिया बदल गयी, हालात न बदले

 

दुनिया बदल गयी, हालात न बदले
हमारे लिए उनके खयालात न बदले

आज भी मिलते हैं बेगानो की तरह
कि हमारे उनके ताल्लुकात न बदले

हमारे होठो पे है वही पुराना तराना
औ आज भी हमारे सुरताल न बदले

आज भी मजबूरियां वही की वही हैं
हमारी जिंदगी के सवालात न बदले

गर इससे बेहतर हो नही सकता तो
मुकेश हमारे हालत बहरहाल न बदले

मुकेश इलाहाबादी ....................
..

Friday 28 June 2013

एक सितारे हैं जो जागे तेरी तन्हाई मे रात भर तेरे साथ


एक सितारे हैं जो जागे तेरी तन्हाई मे रात भर तेरे साथ

एक तुम हो जो रोया किये आवारा चांद के लिये शब भर

मुकेश इलाहाबादी ......................................

इंतज़ार ऊम्र भर का, चंद लम्हों की मुलाक़ात,,




इंतज़ार  ऊम्र भर का, चंद लम्हों की मुलाक़ात,,
हमको तो फिर भी ये सौदा सस्ता लगा मुकेश
मुकेश इलाहाबादी --------------------------

न मौसम बदला न फिजा बदली न बदले हैं हम



न मौसम बदला न फिजा बदली न बदले हैं हम
फिर मेरे सरकार के तेवर कयूं बदले.बदले से हैं
मुकेष इलाहाबादी --------------------------
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Wednesday 26 June 2013

यूं तो लोग हमको जमाने मे मिले बहुत

 

यूं तो लोग हमको जमाने मे मिले बहुत

ये अलग बात नजर जा के तुमपे ही टिकी



मुकेश इलाहाबादी .........................

कभी न कभी तो उन्हे मेरी कोई न कोई अदा पसंद आयेगी,

 

कभी न कभी तो उन्हे मेरी कोई न कोई अदा पसंद आयेगी,
इस उम्मीद पे हम रोज दर रोज खुद को संवारे चले जाते है
मुकेश  इलाहाबादी .........................................

Tuesday 25 June 2013

किताबे मुहब्बत मे हम 'वफ़ा' लिख के लाये थे


 

किताबे मुहब्बत मे हम 'वफ़ा' लिख के लाये थे
वे हँस के बोले 'हमारी किताबे जीस्त मे इसका कोई काम नही'
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------------------------------

हमसे हंस बोल और इठला रहे थे



हमसे हंस बोल और इठला रहे थे

हमे क्या पता वे दिल बहला रहे थे



अपने जेब र्खच के पैसों से उनको

रोज पिज्जा औ र्बगर खिला रहे थे



उनका मोबाइल मै रिर्चाज कराता

औवो मेरे रकीब से बतिया रहे थे



हमने की इजहार ए मुहब्ब्त तो वो

मुहॅ हथेलीसे दबा खिलखिला रहे थे



हम इतने सीधे मासूम ठहरे मुकेश 

उनकी ठिठोली पेभी जॉ लुटा रहे थे



मुकेश इलाहाबादी .................

आ तुझे मै प्यार दूं




आ तुझे मै प्यार दूं
जहान सारा वार दूं

तपते हुये मौसम को
ठंडी मस्त बयार दूं

प्रेम पुष्प को खिला
तुझे मौसमे बहार दूं

हवा से बिखर गई
जुल्फ को संवार दूं

बज्म मे तेरी मुकेश
मै ज़िदगी गुजार दूं

मुकेश इलाहाबादी...

Monday 24 June 2013

क्या करें हम भी शरारत हो ही जाती है

 
 क्या करें हम भी शरारत हो ही जाती है तुमको देख कर,,
तुम ही अपनी मासूमियत से कह दो,जरा हद मे रहा करे
मुकेश इलाहाबादी...................................

ये आदत है तुम्हारी जाने जाना,




ये आदत है तुम्हारी जाने जाना, पहले दिले चमन बसाना फिर उजाड़ देना
ये अलग बात हम वो परवाने हैं जो वीराने मेभी खुश आसियाने मे भी खुश
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------------

जी मैंने कहा, अक्सर बाज़ार के आईने झूठ बोलते हैं

 
 
जी मैंने कहा, अक्सर बाज़ार के आईने झूठ बोलते हैं
इक बार मेरे आईना ऐ दिल मे भी तो झांक के देखो,,,
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------------------

Friday 21 June 2013

एक और इजाफा हुआ हिज्र की रातों मे




 एक और इजाफा हुआ हिज्र की रातों मे
अबतो रात भी नही कटती तेरी यादों मे

अभी तक महकती है घर की दरो दीवारें
छोड गये थे तुम खुशबू अपनी हवाओं मे

मासूम चेहरा और तेरे बिखरे बिखरे गेसू
वही चेहरा आज भी बसा मेरी निगाहों मे

कि वर्षो बीत गये तुझसे बिछडे हुये तुमसे
पर तेरा जिक्र आ ही जाता है बातो बातों मे

मुकेश  इलाहाबादी ...... ..............

Thursday 20 June 2013

अब अपने महबूब की क्या कया खूबियां गिनाउं, मुकेश




अब अपने महबूब की क्या कया खूबियां गिनाउं, मुकेश
बस इतना जान लो जान लो, जमाने मे वो सबसे जुदा है

मुकेश  इलाहाबादी.......................................

Wednesday 19 June 2013

रात जब कभी तारों से भरा आकाश देखना

बस, एक आरज़ू है ,, तुमसे,
रात जब कभी तारों से भरा आकाश देखना
सितारों के बीच तनहा चाँद भी होगा देखना
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------

गुल नही, गुलशन नही, कारखाना ए इत्र नही



गुल नही, गुलशन नही, कारखाना ए इत्र नही
फिर तेरे कूचे मे ये खुशबू सी क्यूँ है ???????
मुकेश  इलाहाबादी .........................

देख तो लूं पहले सूरत आपकी जी भर के,


 

देख तो लूं पहले सूरत आपकी जी भर के,
गुफ्तगू का क्या ? फिर कभी  हो जायेगी
मुकेश इलाहाबादी --------------------------

घर मे कैक्टस उगाये बैठे हैं,,

घर मे कैक्टस उगाये बैठे हैं,,
आस  खुशबू की लगाये बैठे हैं

हमारे नाम की जपते थे माला
रकीब की मेंहदी लगाये बैठे हैं

जान न ले कोई हाले दिल,,,
नकाब मे चेहरा छुपाये बैठे हैं

जानता हूं तुम नही आओगे
फिर भी दिल बिछाये बैठे हैं

तुम्हारा तो दिल ही गया हैं
हम सारा जहां लुटाये बैठे हैं

मुकेश इलाहाबादी ------------

Tuesday 18 June 2013

रख के हथेली पे सूरज सोचता है



रख के हथेली पे सूरज सोचता है वो,सब कुछ सोख लेगा !!
उसे मालूम नहीं ये महबूब की आखें हैं कोई समंदर नहीं!!
मुकेश इलाहाबादी ----------------------------------------------

हम जिस बुत की इबादत करते थे,,

हम जिस बुत की इबादत करते थे,,
वो किसी और का खुदा निकला
मुकेश इलाहाबादी --------------

हम जिस बुत की इबादत करते थे,,

हम जिस बुत की इबादत करते थे,,
वो किसी और का खुदा निकला
मुकेश इलाहाबादी --------------

वक़्त मुहब्बत के शोलों को और हवा देता है



वक़्त मुहब्बत के शोलों को और हवा देता है
ये कोई अलाव नहीं जो धीमे धीमे बुझ जाए
मुकेश इलाहाबादी -------------------------------

आरज़ू अपनी उसके दर पे रख के आये हैं

 

आरज़ू अपनी उसके दर पे रख के आये हैं
एक फूल हम पत्थर पे रख के आये हैं

मांग न ले कोई उनसे उनका दिल इसलिए
जनाब अपना दिल घर पे रख के आये हैं

उस किनारे ने आवाज़ दी तुम चले आओ,,
हम फूलों की कश्ती लहर पे रख के आये हैं

सूना सीप मे बूँद मोती बन जाये सागर के
हम भी ख्वाहिश समंदर पे रख के आये हैं

शहर ही नहीं हमने छोड़ दी सारी दुनिया
पर दिल मुकेश तेरे दर पे रख के आये हैं

मुकेश इलाहाबादी -----------------------------


Monday 17 June 2013

रात कोहनी पे वो सर रख के रोया



वो,रात कोहनी पे सर रख के रोया
जाने किस बात पे रह रह के रोया
 

गुमसुम गुमसुम रहता था आज वो
महफ़िल मे तो हरदम हँसता रहता
 

पाके तेरा कांधा फुट फुट के रोया
पर तन्हाई में तो छुप छुप के रोया
 

मुकेश कहता किससे मन की बातें
जब भी रोया दिल मे घुट -२ के रोया
 

मुकेश इलाहाबादी ---------------------

छेड़ूँ उसको तो गुस्सा होती है





 छेड़ूँ उसको तो गुस्सा होती है
 गर न छेड़ूँ तो मायूस होती है
उसकी बातें भी उसकी तरह
बड़ी  कितनी मासूम होती हैं
मुकेश इलाहाबादी -----------

उनके पहले बोसे का खुमार अभी बाकी

 
उनके पहले बोसे का खुमार अभी बाकी
और नही पी सकता उनका नशा तारी है
मुकेश इलाहाबादी -----------------------

दिल चन्दन जलाते रहे


 

दिल चन्दन जलाते रहे
प्यार  को  महकाते रहे
 

प्यार बूते पत्थर हमारा
पर प्रेम पुष्प चढाते रहे
 

रिश्तों  के मंदिर मे हम
दीप विश्वास जलाते रहे
 

लाख दर्द दिल मे निहाँ
मगर हम मुस्काते रहे
 

ग़ज़ल के गुलदस्ते बना
तन्हाई को सजाते रहे

मुकेश इलाहाबादी ---

चलो अच्छा हुआ जो दागे दिल मिटा नही

 

चलो अच्छा हुआ जो दागे दिल मिटा नही
तेरी बेवफाई का कुछ तो सबूत बाकी है!!
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------

Saturday 15 June 2013

मतले का शेर हमने तुमको बना लिया



मतले का शेर हमने तुमको  बना लिया 
मक़्ते मे फिर अपना नाम सजा  लिया

नफ़स - २ मे तेरा नाम पिरोकर,खुद को 
माले  का  आखिरी  मनका  बना लिया 

घर मे तेरी यादें एहतियात से सजाकर
तेरे इंतज़ार मे हमने आखें बिछा लिया

मुहब्बत के आकाश मे तारे तो बहुत थे
तुझको  हमने  अपना चांद बना लिया 






न  शायरी का इल्म है, ग़ज़ल का शऊर
तेरे प्यार मे खुद को शायर बना लिया

मुकेश इलाहाबादी ------------------------

जुबां पे अपने वह शक्कर रख के आया


जुबां पे अपने वह  शक्कर रख के आया
कातिल बगल मे अपने खंज़र रख के आया

आखों में अपने वह शोले छुपाये था,
दिल मे अपने गहरा समंदर रख के  आया

सड़क पे रह के दूसरों का घर बनाया
खुश है बहुत अपना छप्पर रख के आया

दौलत औ शोहरत उन्ही की होती है
जो हाथ की लकीरों मे मुक़द्दर रख के आया

फूलों सा नाज़ुक दिल रखता था मुकेश
अरमानो पे आज अपने पत्थर रख के आया

मुकेश इलाहाबादी ------------------------



Friday 14 June 2013

अब कोई भी तस्वीर साफ़ नज़र आती नही

 

अब कोई भी तस्वीर साफ़ नज़र आती नही
कि वक़्त ने आईने को भी धुंधला कर दिया
मुकेश इलाहाबादी ------------------------------



मुहब्बत का इरादा न था फिर भी,,,,
मेरे ख़त को चूम के गंगा मे बहा आये
मुकेश इलाहाबादी ------------------------

देख कर अंजामे मुहब्बत औरों का हमने तौबा कर ली थी

देख कर अंजामे मुहब्बत औरों का हमने तौबा कर ली थी
देखा जो तुझे ख़याल अपना बदलना ही पडा ,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मुकेश इलाहाबादी ----------------------------------------

हम तो उम्रभर मारे गए अपनी शराफत में,




हम तो उम्रभर मारे गए अपनी शराफत में,
काबिल हुए न तेरी नफरत के न उल्फत के
मुकेश  इलाहाबादी ----------------------------

उम्र भर को हम ठहर जाते तेरे कूचे मे,,



उम्र भर को हम ठहर जाते तेरे कूचे मे,,
जो जानता आप हमें देखते हो छुप-2 के
मुकेश इलाहाबादी --------------------------

हम डर डर के गुज़रे हैं उनके कूचे से






हम डर डर के गुज़रे हैं उनके कूचे से
यहाँ हवाएँ भी पूछ के चला करती हैं
मुकेश इलाहाबादी ----------------------

हो गए हैं दूर हम तुमसे,




हो गए हैं दूर हम तुमसे,
दुनिया के झमेले मे
आओ एक बार फिर मिल लें
तुमसे अकेले मे 
वो चेहरा अब तक न भूला,
दिखा था गाँव के मेले मे

मुकेश इलाहाबादी ----------

Thursday 13 June 2013

हो गए दूर तुमसे, दुनिया के झमेले मे


हो गए दूर तुमसे, दुनिया के झमेले मे
आओ एक बार फिर मिल लें अकेले मे
मुकेश इलाहाबादी ------------------------

आँख खोलूँ तो तेरा ही चेहरा दिखाई दे




आँख खोलूँ तो तेरा ही चेहरा दिखाई दे
तेरी सूरत के सिवा कुछ ना दिखाई दे 
पत्थर सा था मेरा वजूद बिखर गया,,
हमको अब हर सिम्त सहरा दिखाई दे
घर से निकलूँ भी तो महफूज़ नहीं जाँ 
कंही भी आओ जाओ ख़तरा दिखाई दे
बंद खिडकियों से तीरगी नज़र आयेगी 
खोलो ज़रा दरीचे तो आसमा दिखाई दे
हर एक चेहरे को पढता हूँ बड़े गौर से 
शायद भीड़ मे कोई तो सच्चा दिखाई दे
मुकेश इलाहाबादी ----------------------



Wednesday 12 June 2013

उनके पास पहुचने का कोई तरीका तो बता

 

उनके पास पहुचने का कोई तरीका तो बता ! ऐ मौला
कि अब उनसे दूर रहने की सज़ा सही जाती नही
मुकेश इलाहाबादी ----------------------------------------

तूने न सही तेरी अदाओं ने खंज़र चलाया होगा

 

तूने न सही तेरी अदाओं ने खंज़र चलाया होगा
ज़माने ने तुझे बेवज़ह तो कातिल न कहा होगा

चाँद के जिस्म पे यूँ ही दाग नहीं लगे है मुकेश
चाँद ने भी बहुतो का दामन मैला किया होगा
मुकेश इलाहाबादी --------------------------------

नींद किसी करवट हमे आती नही

नींद किसी करवट हमे आती नही
याद तुम्हारी ज़ेहन  से जाती नही
लैला मजनू हो या कि शीरी फरहाद
कहानियाँ दिल हमारा बहलाती नही
शज़र तो बहुत मिले राह मे मगर
हैं सभी ताड़ -वृक्ष  छांह आती नही
जतन तो बहुत करता हूँ मुकेश पर
अब चेहरे पे मुस्कराहट आती नही

मुकेश इलाहाबादी -------------------

Tuesday 11 June 2013

कोई ज़रूरी तो नही जुबाँ खोला जाए

 

कोई ज़रूरी तो नही जुबाँ खोला जाए
जब आँख बोले है तो क्यूँ बोला जाए

संबंधो को बनाए रखना ही बेहतर है
क्यूँ बेवज़ह रिश्तों मे विष घोला जाए

गमे दिल जब कोई बाट सकता नही
तो  क्यूँ अपना राजे दिल खोला जाए 

ज़िन्दगी है कोई व्यापार नहीं मुकेश 
मुहब्बत को  क्यूँ पैसों से तोला जाए 

मुकेश इलाहाबादी ----------------------

Sunday 9 June 2013

इधर सूरज की चमक कम हुई

इधर सूरज की चमक कम हुई
उधर चाँद की आँख नम हुई

चमन मे उडती हुई अच्छी न लगी
मनचलों के हाथ तितली बेदम हुई

लम्हा लम्हा,क़तरा- कतरा रोई रात
तब जाके शुबो चांदनी शबनम हुई

उसके हाथो इक्का औ बाद्शा हारे
जब से वह तुरुप की बेग़म हुई

चल  रहे  थे  लू  के थपड़े अब तक
तेरी ज़ुल्फ़ से ही हवा पुरनम हुई

मुकेश इलाहाबादी ----------------

Saturday 8 June 2013

पहले ख़त भेजते थे तो खुशबू भी आती थी




पहले ख़त भेजते थे तो खुशबू भी आती थी
अब मैसेज व एस एम् एस मे वो बात कहाँ
मुकेश  इलाहाबादी ------------------------

हम नवाब थे हमने फूल भी न उठाया


हम नवाब थे हमने फूल भी न उठाया
आज महबूब के नखरे उठाये फिरते हैं
मुकेश इलाहाबादी ----------------------

दिल गीली लकड़ी जलाते रहे


 
दिल गीली लकड़ी जलाते रहे
लपक उट्ठी नहीं धुंआते रहे
मुहब्बत की तो दिल से की,
बोझ गमे बेवफाई उठाते रहे
उनकी आखों की हया ऐसी
नज़र मिलाई तो शर्माते रहे
चाहा तो कई बार कि कह दूं
हर बार हम ही घबराते रहे
मुकेश इलाहाबादी ------------

ज़ख्म गहरा लगा होगा

 ज़ख्म गहरा लगा होगा
तभी वह शायर बना होगा

कुंए से बुलुप की आवाज़ आयी
किसी ने कंकर फेका होगा 

बेसुध सो गया है मुसाफिर
सफ़र मे थक गया होगा

खंडहर खुद ही  बताते हैं
यंहा कभी महल रहा होगा

शहर मे इतना सन्नाटा क्यूँ
ज़रूर कोई हादसा हुआ होगा

मुकेश इलाहाबादी -------------

झूठ से शरमाए नही

झूठ  से शरमाए नही
सच पे मुस्काये नही

पाप  उम्र  भर किया
अंत तक पछताए नहीं 

ज़िन्दगी मुस्किल भरी
पर  कभी घबराए नही

मंजिल पे निकल पड़े
राह में सुस्ताये नही

दाद  हर  शेर  पे मिली
हम कभी इतराए नही

मुकेश इलाहाबादी -----

Thursday 6 June 2013

जो ज़िन्दगी भर न पहचाने गए

जो ज़िन्दगी भर न पहचाने गए
पर बाद मरने के वे भी जाने गए

आसानी से अपना गाँव नहीं छोड़ा
मजबूरी मे ही परदेश कमाने गए

मुट्ठी भर पैसा थैला भर शक्कर
भूल जाओ सस्ती के ज़माने गए

जंहा पर ढोल ही ढोल बज रहे थे
बेकार तुम वहाँ तूती बजाने गए

लोग बोरियों मे अनाज लिए थे
हम भी दो चार दाने भुनाने गए 


तुकबंदी औ पैरोडी की महफ़िल मे 
मुकेश तुम क्यों ग़ज़ल सुनाने गए 
मुकेश इलाहाबादी -----------------

Wednesday 5 June 2013

चलो अच्छा है हमारे पास गीता औ कुरान तो है



चलो अच्छा है हमारे पास गीता औ कुरान तो है
झूठ को सच करने का एक तरीका आसान तो है

वक़्त  और मुक़द्दर साथ नहीं देता ये अलग बात
ज़माने की फिजां ही बदल दूं ऐसा अरमान तो है

घोडा -गाडी,धन-दौलत औ महल-दुमहला  न सही
पास अपने मेहनत,गैरत,सच्चाई औ ईमान तो है 

मुकेश तुम्हारे पास ईंट मिट्टी औ गारे की न सही
सोने के लिए ज़मीं औ सर के ऊपर आसमान तो है 

मुकेश इलाहाबादी ---------------------------------------

कभी इधर तो कभी उधर भटकता हूँ

कभी इधर तो कभी उधर भटकता हूँ
तस्वीरे यार दिल से लगाए फिरता हूँ

यूँ तो मुकेश ख़ाक हो चुका सारा वजूद
यादों के अलाव मे धीमे धीमे जलता हूँ

मुकेश इलाहाबादी ------------------------

अपने सपाट चेहरे से तुम हाले दिल न छुपा पाओगी


 



अपने सपाट चेहरे से तुम हाले दिल न छुपा पाओगी
हमें मुहब्बत की हर तहरीर पढने का हुनर मालूम है
मुकेश इलाहाबादी ---------------------------------------

तू कहे तो

                                                                                     
   
 तू कहे तो
सोख लूं
तेरे आसुओं को
सूरज बन कर
फिर बरसूँ तुम पे
मुहब्बत की
बदली बन कर

मुकेश इलाहाबादी -
--                       


Monday 3 June 2013

मुझे मालूम है मुकेश

मुझे मालूम है मुकेश तू मुहब्बत किसी कदर छोड़ नही सकता
कि मुहब्बत मेरे दिल मे सांस और रगों मे खूं बन के रन्वा है
मुकेश इलाहाबादी ------------------------------------------------

खेलता रहा मेरे दिल से किसी खिलौने की मानिंद

खेलता रहा मेरे दिल से किसी खिलौने की मानिंद
हम भी खुश थे चलो इसी बहाने उनका दिल तो बहला 
मुकेश इलाहाबादी ------------------------------------------

एक हम थे उम्र भर लिखते रहे उनकी ख़ूबसूरती पे ग़ज़ल


 



एक हम थे उम्र भर लिखते रहे उनकी ख़ूबसूरती पे ग़ज़ल
एक वो थे  ---- पढ़ते रहे किसी और के आखों की तहरीर।।।
मुकेश  इलाहाबादी -------------------------------------------