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Sunday 30 September 2018

तुमको वक़्त नही मिलता

तुमको वक़्त नही मिलता
मुझकॊ और नही मिलता

ज़िंदगी उलझा हुआ मांझा
ढूंढो तो छोर नही मिलता

चोरियां तो ज़ारी हैं बदस्तूर
मगर कोई चोर नही मिलता

लोग गला रेत जाते हैं यहाँ
हाथों मे खज़र नही मिलता

मुकेश इलाहाबादी......




Friday 28 September 2018

दिन भर की थकन से ख़ुद को ताज़ा दम पाता हूँ

दिन भर की थकन से ख़ुद को ताज़ा दम पाता हूँ
रात होते ही तेरे ख्वाबों की नदी में उतर जाता हूँ

तुम्हारा ईश्क़ मेरे लिए तो संजीवनी बूटी जैसा है
ज़माना रोज़ रोज़ मारता है रोज़ रोज़ जी जाता हूँ

जानता हूँ समंदर की लहरें आ आ कर मिटा देंगी
फिर भी रेत् पे तुम्हारा नाम लिखता हूँ मिटाता हूँ

मै मुफ़लिस मेरे पास सिर्फ मुहब्बत की चादर है,
मेरे घर मेहमान आता है तो वही चादर बिछाता हूँ

बूढा हो गया हूँ मेरे पास चंद पुरानी यादे ही शेष हैं
जो भी मिलता है मुकेश वही वही किस्सा सुनाता हूँ

मुकेश इलाहाबादी --------------------------------

Thursday 27 September 2018

न मुरझाने वाला फूल

 दृश्य एक ---

नेपथ्य
से एक लड़की आती है
नेपथ्य के दूसरी तरफ से एक लड़का आता है

लड़का - "तुम मुझसे प्यार करोगी ?"
लड़की  - "हाँ ! करूँगी, पर जो न मुरझाने वाला फूल
ला कर देगा, मै उसी को प्यार करूंगी "

यह कह के लड़की हंसने लगी
और लड़का उदास हो कर
लड़का न मुरझाने वाला फूल ढूंढ़ने चला गया
और तब से वापस नहीं आया

धीरे धीरे - वो लड़की उस लड़के के इंतज़ार में
उदास होने लगी जो  मुरझाने वाला फूल लेने गया था


दृश्य दो --

नेपथ्य से दूसरा लड़का आता है
और एक दूसरी लड़की आती है
लड़की से " क्या तुम मुझसे प्यार करोगी ??"
लड़की " हाँ करूँगी अगर तुम्हारे पास न मुरझाने वाला फूल होगा तो ?"
लड़के ने कहा " हाँ ! मेरे पास न मुरझाने वाला फूल तो है पर ये
उसी को दिखता है जिसकी सुंदरता कभी कम नहीं होती "

ये सुन लड़की उदास हो गयी

बोली "ठीक है तुम मेरे लिए सिर्फ फूल ले के आओ
         मै तुमसे प्यार करूँगी "

फिर वे दोनों बहुत देर तक प्रेम में रहे

जबकि पहला लड़का -
न मुरझाने वाला फूल ही ढूंढ रहा है अभी तक
और पहली लड़की न मुरझाने वाले फूल को ले के लौटे लड़के का इंतज़ार कर रही है
अभी तक - उदास

 मुकेश इलाहाबादी ------------------------------




Wednesday 26 September 2018

रात मेरे आँखों की झील में चांद उतर आया

रात मेरे आँखों की झील में चांद उतर आया
मैंने  भी खूब मौज़ की, वो भी  खूब  नहाया

वो आज बहुत खुश थी मुझपे मेहरबान थी
मैंने भी उसको लतीफे सुना सुना के हंसाया

मैंने उससे कहा इक बोसा तो दे दो जानम
पहले खिलखिलाई फिर मुझे मुँह चिढ़ाया

थक कर मेरी गोद में, ख़ुद ब ख़ुद लेट गयी
मैंने उसके बालों को उँगलियों से सहलाया

ये और बात शब भर ही रहा उसका साथ
मगर उसकी यादों ने उम्र भर गुदगुदाया

मुकेश इलाहाबादी--------------------------

Tuesday 25 September 2018

मै इक अँधा कुँआ मेरे अंदर क्या उतरेगा कोई

मै इक अँधा कुँआ मेरे अंदर क्या उतरेगा कोई
मेरे अंदर की खामोशी को क्या समझेगा कोई

ऊपर ऊपर ओढ़ रखी हैं मैंने चादर चाँदनी की
दिल के भीतर कितने सूरज क्या देखेगा कोई

अक्सर चुप रहता हूँ, दूर खड़ा कोई हँसता है
ऐसा लगता है मेरे भीतर है दूजा रहता कोई

यूँ तो गुनाह करने की फितरत नहीं हैं अपनी
पर, लगता मेरे अंदर हैं बेईमान बसता कोई

हर शख्श के काँधे पे है दुःख की मोटी गठरी
मुकेश  दूजे के दुःख को क्या मह्सूसेगा कोई


मुकेश इलाहाबादी ----------------------------


Monday 24 September 2018

आग के शोलों पे चल के देखते हैं

आग के शोलों पे चल के देखते हैं
आओ, हम इश्क़ कर के देखते हैं
सुना है कि, दुनिया रंग बिरंगी है
आओ, हम तुम मिल के देखते हैं
नंगी आँखों से तो देख ली,आओ
दुनिया, चश्मा, पहन के देखते हैं
किसी ने कहा दुनिया इक मेला है
आओ हम तुम भी चल के देखते हैं
अब तक झूठ के पैरहन पहने,अब
सच की कमीज पहन के देखते हैं
मुकेश इलाहाबादी -------

Sunday 23 September 2018

आग के शोलों पे चल के देखते हैं

आग के शोलों पे चल के देखते हैं
आओ, हम इश्क़ कर के देखते हैं

सुना है कि, दुनिया रंग बिरंगी है
आओ, हम तुम मिल के देखते हैं 

नंगी आँखों से तो देख ली,आओ 
दुनिया, चश्मा, पहन के देखते हैं

किसी ने कहा दुनिया इक मेला है
आओ हम तुम भी चल के देखते हैं

अब तक झूठ के पैरहन पहने,अब
सच की कमीज पहन के देखते हैं 

मुकेश इलाहाबादी -----------------

Friday 21 September 2018

ख़ुदा, ने पहले पहल जब रात बनाई

ख़ुदा,
ने पहले पहल जब रात बनाई
तो रात बहुत उदास थी
बहुत स्याह थी
हर तरफ अँधेरा ही अँधेरा
अजब सी दहशत होती
रात के नाम से
लोग रात की पाली में आने से डरते थे
उन्ही दिनों की बात है
एक प्रेमी जोड़ा जो दिन के उजाले में
नहीं मिल पाता
रात मिलने की ठानी
पर रात इतनी स्याह थी की
हाथ को हाथ भी सुझाई न देता था
उस नीम अँधेरे में
पूरी क़ायनात सोई हुई थी
सारे परिंदे
सारे फूल
सारी कलियाँ
तब उस प्रेमिका न
अपने आँचल से कुछ सलमा सितारे ले केफ़लक़ पे
उछाल दिए और
 आसमान में ढेरों सितारे जगमग - जगमग करने लगे
फिर उसने अपनी दूधिया हँसी को ज़मीन में बिखर जाने दिए
जिससे' रातरानी ' के फूल खिले
और रात महकने लगी
फिर उसने अपनी झपकती पलकों से
स्याह रात को निहारा
ढेर सारे जुगनू बिजली बन चमकने लगे
अपना ये श्रृंगार देख रात खुश हो गयी
और तब
ये दोनों पागल प्रेमियों ने
धरती का बिछौना बना
आसमान की चादर ओढ़ी
और देर तक की "केलि"

और - सुबह खुश - खुश चले गए अपने नगर

(तब से ही लोगों ने मुहब्बत के लिए रात का वक़्त मुक़र्रर कर दिया
क्यूँ कि तब से रात इतनी सुहानी होने लगी है )

और ,,,,
जानती हूँ सुमी ??
वो प्रेमी जोड़ा कौन था ???
एक तुम ,,, और एक ये पागल प्रेमी

देखो हँसना नहीं मुस्कुराना नहीं

मेरी प्यारी सुमी  .......

मुकेश इलाहाबादी ----------------------

Thursday 20 September 2018

मैंने कहा - "तुम कौन ???"

मैंने
कहा - "तुम कौन ???"
उसने कहा " मै वन देवी "
"ओह ! तो मेरे पास आओ न ???"
वो खिलखिलाई
मुस्कुराई
अदा से ज़ुल्फ़ें झटकीं
हथेली की अंजुरी बना के
होठों तक लाई
गुलाबी होठों को गोल गोल किया
फिर - आँखों में कुछ शरारत सी उभरी
और हथेली से मेरी तरफ फूंका

"मै खुशबू की नदी भी हूँ
लो तुम इस नदी डूबो
और मै चली '''"

यह कह वो चल दी
और खो गयी यादों के न जाने किस जंगल में

और ,,
तब से  मै ढूंढता हूँ - उस वन देवी को
खुशबू की नदी को

ओ ! मेरी वन देवी तुम
कंहा हो आओ न ,,,,,,

मुकेश इलाहाबादी -----------------




मन , के मानसरोवर में

मन ,
के मानसरोवर  में
उतरोगी तो, तुम्हे
दो कबूतर
अनादि काल से बैठे मिलेंगे
गुटरगूँ - गुटरगूँ
करते मिलेंगे

जिसमे कि - एक तुम हो
                एक मै हूँ

(देखो तुम हँसना नहीं - पर ये सच है - मेरी मैना
मेरी बुलबुल - मेरी गुतुंगरगूं )

मुकेश इलाहाबादी ------------------------------


Monday 10 September 2018

ख़ुदा ने एक बार बहोत खुद्बसूरत चाँद बनाया

ख़ुदा
ने एक बार
बहोत खुद्बसूरत चाँद बनाया
हाला कि उसमे कुछ दाग़ थे
फिर भी बहुत खूबसूरत था
उसकी तारीफ फरिश्तों ने भी की
उस खूबसूरत चाँद को फ़लक़ ने
देखते ही अपने लिए मांग लिया

बाद उसके ख़ुदा ने एक और
चाँद बनाया
बेदाग़
और नूर ही नूर से भरपूर
जिसे उसने अपने हाथों से
ज़मी पे उतारा
जानती हो उसका नाम क्या है ???

उसका नाम है - सुमी

क्यूँ है न सुमी???

मुकेश इलाहाबादी ------------------

Sunday 9 September 2018

आजकल भाभियाँ आंटियां कहर ढा रही हैं

आजकल भाभियाँ आंटियां कहर ढा रही हैं
ऍफ़ बी ट्विटर सब जगह नज़र आ रही हैं

नए तेवर नए अंदाज़ नई नई सी हैं अदाएं
छोटा हो बड़ा हो,बूढा सब को लुभा रही हैं

है उम्र को तो इन्होने पल्लू में बाँध रखा
पचास  में भी पचीस की नज़र आ रही हैं

ये आंटियां भाभियाँ रोती नहीं, दबती नहीं
अपने काम से हर जगह डंका बजा रही हैं

घर भी संभालें बच्चों को भी हैं ये संभाले
दकियानूसी सासों को सबक सीखा रही हैं

इन अंटियों भभियों की क्या तारीफ करूँ
नारी सिर्फ अबला नहीं हमें बता रही हैं


मुकेश इलाहाबादी ------------------------




Friday 7 September 2018

अब तो लब हमने सी लिए हैं अपने


अब तो लब हमने सी लिए हैं अपने
दर्द  तन्हाइयों से कह दिए हैं अपने

साँझ हो गयी है अब न आएगा वो
निराश, हम घर चल दिए है अपने

तीर तो हमारे भी तरकश में थे बस
युद्ध के भाव को तज दिए है अपने

मुकेश इलाहाबादी ------------------

उमड़ते घुमड़ते बादलों संग रहा जाये

उमड़ते घुमड़ते बादलों संग रहा जाये
आओ  कुछ देर बारिश में भीगा जाये

भीगे -भीगे पत्ते भीगे - भीगे हैं फूल
कुछ देर इनके संग - संग डोला जाये

वो  इक चिड़िया भीगी बैठी है डाल पे
आ उससे उसका हालचाल पूछा जाये 

मुझको तो बारिश में अच्छा लगता है
तुमको दिक्क्त हो तो रुक लिया जाये

चलो उस बुढ़िया से गर्म गर्म भुट्टे लेके
मुकेश उसी पुरानी पुलिया पे बैठा जाए

मुकेश इलाहाबादी --------------------

Thursday 6 September 2018

यूँ , ही राह चलते मिल गया था

यूँ , ही राह चलते मिल गया था
वो एक ही नज़र में भा गया था

वो हमारा है हमारा ही रहेगा, ये
सितारों ने भी हमसे ये कहा था

मिल के उससे होश खो बैठा था
बातों में उसके जादू था नशा था

कंही मत जाना तुम यहीं रहना
लौट के आऊँगा जल्दी,कहा था

जिसकी बातें कह रहा हूँ, उसकी  
आँखे काली काली रंग गोरा था

मुकेश इलाहाबादी ---------------

ज़मी पे दरी चादर बिछा के बैठें


ज़मी पे दरी चादर बिछा के  बैठें
आ चार यार पुराने बुला के  बैठें

काजू, नमकीन और थोड़े वैफर्स
साथ में कोल्ड ड्रिंक मंगा के बैठें

जब जमी हो महफ़िल दोस्तों की
फिर अपना मुँह क्यूँ फुला के बैठें

रोज़ रोज़ ऐसे मौके कंहा मिले है   
मस्तियों के जाम छलका के बैठें

बहुत किस्से हैं सुनने सुनाने को
कुछ देर,  दर्दो  ग़म भुला के बैठें

 मुकेश इलाहाबादी ---------------

Monday 3 September 2018

ज़रा सी बात पे खटपट कर बैठे


ज़रा सी बात पे खटपट कर बैठे
फिर हमसे वे दूर दूर रह कर बैठे

पहली मुलाकात हुई, जब उनसे
हया के घूँघट में सिमट कर बैठे

पहले तो हुईं इधर-उधर की बातें
फिर हमारे नज़दीक आ कर बैठे

इक दिन ऐसा भी आया कि, वे
हमारे सीने से  लिपट कर बैठे

उनकी तुनकमिज़ाज़ी ही है जो
आज हम उनसे बिछड़ कर बैठे

मुकेश इलाहाबादी --------------


Saturday 1 September 2018

सतह के नीचे नीचे पानी बहता तो था

सतह के नीचे नीचे पानी बहता तो था
बर्फ का ही सही मगर मै दरिया तो था

यादों के कबूतर, अक्सर गुटरगूँ करते 
इस दिले खंडहर में कोई बोलता तो था 

क्या हुआ जो बूढा था, और बीमार था
रात देर से लौटूं तो बाप टोंकता तो था

तुझे भूल जाने से, कुछ और तो नहीं,हाँ
सुनाने के लिए मेरा पास किस्सा तो था

व्हाट्स एप ऍफ़ बी में ज़माने में मुकेश
सुमी के लिए, सही,ख़त लिखता तो था

मुकेश इलाहाबादी --------------------

तेरी महफ़िल में इक बार जो आये है

तेरी महफ़िल में इक बार जो आये है
ता उम्र फिर वो कंही और न जाए है

यूँ तो ग़मज़दा रहता  है ये दिल पर
जब भी तुझसे मिले ये मुस्कुराये है

तेरी यादों के सिवा, पास कोई नहीं
फिर ये कानो में कौन गुनगुनाए है

जाने कौन सी झील है या दरिया है
तेरी आँखों में उतरे तो  डूब जाये है 

न आने को कह के गया था मुकेश
तेरी कशिश, फिर से खींच लाए है

मुकेश इलाहाबादी ------------------