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Wednesday 26 September 2018

रात मेरे आँखों की झील में चांद उतर आया

रात मेरे आँखों की झील में चांद उतर आया
मैंने  भी खूब मौज़ की, वो भी  खूब  नहाया

वो आज बहुत खुश थी मुझपे मेहरबान थी
मैंने भी उसको लतीफे सुना सुना के हंसाया

मैंने उससे कहा इक बोसा तो दे दो जानम
पहले खिलखिलाई फिर मुझे मुँह चिढ़ाया

थक कर मेरी गोद में, ख़ुद ब ख़ुद लेट गयी
मैंने उसके बालों को उँगलियों से सहलाया

ये और बात शब भर ही रहा उसका साथ
मगर उसकी यादों ने उम्र भर गुदगुदाया

मुकेश इलाहाबादी--------------------------

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