Pages

Tuesday 29 May 2018

सृष्टि के पहले दिवस से लेकर

सृष्टि
के पहले दिवस से लेकर
प्रलय के अंतिम क्षणों तक
मै तुम्हारी मुस्कान की
सुनहरी और गुनगुनी धूप
सेंकना चाहता हूँ
मुकेश इलाहाबादी ------------

हादसा, मेरे साथ अक्सर ये होता है

हादसा,
मेरे साथ अक्सर ये होता है
हँसते-हँसते दिल मेरा उदास होता है

चलते - चलते
कई बार मै,
बहुत दूर निकल जाता हूँ
फिर भी जाने क्यूँ,
ये दिल तुम्हारे आस - पास होता है ?

यूँ तो ,
मेरी ज़िंदगी में कुछ ऐसा नहीं
जिसे तफ्सील दिया जाये,
हाँ ! जब तुम मेरे साथ होती हो
सिर्फ वो लम्हा खास होता है ।

लोग कहते हैं,
तुम्हारी कहानी के पात्र बड़े अजीब होते हैं,
अब , ज़माने वालों को क्या बताऊँ
उन पात्रों में मेरा ही किरदार छुपा होता है।

मुकेश इलाहाबादी ----------------------


Friday 25 May 2018

सुबह होते ही तेरी यादों की पगडंडियों पे चलने लगता हूँ

सुबह
होते ही तेरी यादों की
पगडंडियों पे चलने लगता हूँ
और सांझ तक ये सफर जारी रहता है
जब तक कि
खो नहीं जाता हूँ
तेरे ख्वाबों के जंगल में

ओ ! मेरी स्वीट स्वीट दोस्त सुन रही हो न ??

मुकेश इलाहाबादी -----------------------

Monday 21 May 2018

वज़ूद पे जंगल उग आये हैं

वज़ूद पे जंगल उग आये हैं
सीने में समंदर हरहराये है

मै, उड़ जाऊँगा खलाओं में
मुझे तो आसमान बुलाये है

तुझको  क्या मालूम मुझे 
तेरी अदाएं बहुत सताये है

पहले बहुत सीधा सादा था
चालाकी,दुनिया सिखाये है

मुकेश मै आज बहुत खुश हूँ,
मेरे ख़त का जवाब आये है

मुकेश इलाहाबादी ------

Saturday 19 May 2018

बहुत ही हसीन, बहुत ही प्यारे हैं

बहुत ही हसीन, बहुत ही प्यारे हैं
मेरी आँखों में जो ख्वाब तुम्हारे हैं

है फ़क़्त तेरी आँखों का पानी मीठा
बाकी दरिया ताल तल्लैया खारे हैं

मुकेश इलाहाबादी -------------------

इक प्यास ले के ज़िंदा हूँ

इक प्यास ले के ज़िंदा हूँ
तेरी आस ले के ज़िंदा हूँ

गर मै ज़िंदा हूँ अभी तो
तेरी साँस ले के ज़िंदा हूँ

तेरा बदन खुशबू खुशबू
वो सुवास ले के ज़िंदा हूँ

मुकेश इलाहाबादी -----

Friday 18 May 2018

कहो तो आप के ये घने गेसू छू देखूं तो

कहो तो  आप के  ये घने गेसू छू देखूं तो
बादल छम- छम कैसे बरसते हैं जानू तो
मुकेश इलाहाबादी -------------------------

Thursday 17 May 2018

इतिहास खुद को फिर -फिर दोहराता है

इतिहास खुद को फिर -फिर दोहराता है
औरंगज़ेब रूप बदल-बदल कर आता है

जिसके पास धनबल हो और हो बाहुबल
वही सत्ता की कुर्सी बार - बार पाता है

चाँद हो, सूरज हो, बादल हो, समंदर हो
ताकत के आगे हर कोई शीश नवाता है 

चाहे राज लोकतंत्र हो या कि प्रजातंत्र हो 
गरीब व कमज़ोर हर तंत्र में मार खाता है

हैं सच मेहनत ईमानदारी, किताबी बातें
मुकेश इन बातों से पेट कँहा भर पाता है

मुकेश इलाहाबादी -----------------------

Wednesday 16 May 2018

जादू से, तितली अगर

जानती हो ?
जादू से, तितली अगर
लड़की बन जाती तो
बिलकुल तुम्हारी तरह होती
रंग - बिरंगी - सतरंगी
मुकेश इलाहाबादी -------

तपता हुआ लगे झुलसता हुआ लगे

तपता हुआ लगे झुलसता हुआ लगे
जाने क्यूँ सारा शह्र जलता हुआ लगे

जैसे आफ़ताब ज़मी पे उतर आया हो
फूल भी पत्थर भी पिघलता हुआ लगे

किसी  न  किसी दर्द के मारे हैं सभी
छोटा हो बड़ा हो बिलखता हुआ लगे

सभी के पांवों में लगे हैं पहिये मगर
फिर भी हर शख्श घिसटता हुआ लगे

बहुत चाहा था संवर लूँ खुद को मुकेश
वज़ूद का ज़र्रा ज़र्रा बिखरता हुआ लगे

मुकेश इलाहाबादी ---------------------

Friday 11 May 2018

उसने , कहा

उसने ,
कहा  'ख़ुदा तुमसे पूछे,
तुम्हे क्या चाहिए ? तो क्या कहोगे ?"
मैंने मुस्कुरा कर कहा "सारी क़ायनात ,,,"
ये सुन उसने, अपने हाथो से
मेरी हथेलियों की अंजुरी बनाई,
फिर उसपे
सबसे पहले रखे  अपने होठं
फिर कपोल
फिर पलकें
फिर फुसफुसा कर कहा "और कुछ ,,,,,?
फिर , मैंने भी उसके कंधे पकड़
गले लगा कर कहा, फुसफुसाते हुए  "'नहीं ! अब और कुछ भी नहीं ""

मुकेश इलाहाबादी ------------------------------------------
 

Thursday 10 May 2018

मैंने, तुम्हारे लिए इत्ती सारी कविता, कहानी और नज़्मे लिखीं,

मैंने,
तुम्हारे लिए इत्ती सारी
कविता, कहानी और नज़्मे लिखीं,
क्या तुम मेरे लिए एक शब्द भी नहीं लिख सकती ??
पहले वो चुप रही
मुस्कुराई,
फिर उँगलियों के पोरों से हवा में कुछ लिखा
और हथेली की अंजुरी बना
होठो के पास ले जा
फूँक कर कहा 'लो पढ़ लेना,
मेरा महकता हुआ ख़त ,,"
और - मुँह चिढ़ा कर भाग गयी,

वो छुई - मुई

मुकेश इलाहाबादी ------------------------


तुम हर वक़्त ऑन लाइन रहा करो

अल्ल - सुबह
"गुड़ मॉर्निंग" से ले कर देर रात "गुड़ नाइट मेसज"
और अनवरत
थोड़े थोड़े अंतराल में
ऍफ़ बी और व्हाट्स -ऐप  के
तुम्हारे अपडेट्स और तमाम मेसेजेस 

हमारे
दरम्यां फ़ैली दूरियों की
अथाह खाई पे
वास्तविक नही तो
कम से कम आभाषी ही सही
एक पुल तो तामील करते ही हैं
कभी ऍफ़ बी तो कभी व्हाट्स ऐप पे
जिसके ऊपर चल कर
मिलन के आभाषी बिंदु पर पंहुच जाता हूँ
अनगिनत बार - हर रोज़
इस लिए तुम्हारा
हर वक़्त ऑन लाइन रहना मेरे लिए
लाइफ लाइन की तरह है
तुम्हारे ऍफ़ बी अकाउंट की जलती हुई ये हरी बत्ती
मेरे लिए किसी जीवन ज्योति से कम नहीं है।
सुन रही हो न सुमी ??

इस लिए तुम हर वक़्त ऑन लाइन रहा करो
भले ही मेरे मेसज का जवाब दो या न दो।

मुकेश इलाहाबादी ----------------------

Monday 7 May 2018

हंसी नहीं आती खिलखिलाहट नहीं आती

हंसी नहीं आती खिलखिलाहट नहीं आती
किसी तरह चेहरे पे मुस्कराहट नहीं आती

वो कोई और साल और महीने और दिन थे
अब सुहाने मौसमो में तेरी याद नहीं आती

खुशी के चाहे जितने गेंदा गुलाब खिला लूँ
वो पहले सी ताज़गी और सुवास नहीं आती

भले ही वे पुराने दिन मुफलिसी के दिन थे
पर मुकेश अब रईसी में वो बात नहीं आती 

मुकेश इलाहाबादी -------------------------
किसी तरह चेहरे पे मुस्कराहट नहीं आती

वो कोई और साल और महीने और दिन थे
अब सुहाने मौसमो में तेरी याद नहीं आती

खुशी के चाहे जितने गेंदा गुलाब खिला लूँ
वो पहले सी ताज़गी और सुवास नहीं आती

भले ही वे पुराने दिन मुफलिसी के दिन थे
पर मुकेश अब रईसी में वो बात नहीं आती 

मुकेश इलाहाबादी -------------------------

कानो में हौले हौले गुनगुना गया कोई


कानो में हौले हौले गुनगुना गया कोई
दिल उदास था बहुत बहला गया कोई

मै तो अपनी धुन में चला जा रहा था
कनखियों  से देख मुस्कुरा गया कोई

कुछ होशियारी कुछ सलीका तो सीखूँ
तमाम दुनियादारी समझा गया कोई

करवटें  बदलते बीता करती थी, रातें
आँखों को मीठे ख़ाब दिखा गया कोई

मुकेश ये दिल मेरा वीराने का मंदिर
कल सांझ प्रेम पुष्प चढ़ा गया कोई

मुकेश इलाहाबादी --------------------

Wednesday 2 May 2018

हर रोज़ सुबह उठते ही तेरी तस्वीर देख लेता हूँ


हर रोज़ सुबह उठते ही तेरी तस्वीर देख लेता हूँ
दिन भर के लिए ख़ुद को ताज़गी से भर लेता हूँ

तुझको क्या मालूम,तेरी हँसी चांदी के सिक्के हैं
तू हँसती हैं मै चुपके अपनी से झोली भर लेता हूँ

मुकेश दिल अपना जब कभी उदास होता है, तो
तेरी तस्वीर सामने रख,जीभर बातें कर लेता हूँ  

मुकेश इलाहाबादी -------------------------------

एक देश का राजा राजा थोड़ा थोड़ा स्वार्थी था थोड़ा थोड़ा काम समझदार था

एक देश का राजा राजा थोड़ा थोड़ा स्वार्थी था थोड़ा थोड़ा काम समझदार था।  उस राजा का प्रधानमंत्री और बाकी मंत्री भी राजा की तरह थोड़े थोड़े स्वार्थी और थोड़े थोड़े कम समझदार थे। लिहाज़ा राज्य की जनता भी थोड़ी दुःखी थी थोड़ी परेशान थी। राज्य का विकास तो हो रहा था पर उस तरह से न हो पा रहा था जैसा होना चाहिए।  जिस तरह की ख़ुशीहाली और शांति होनी चाहिए थी वो नहीं हो पा रही थी।  लिहाज़ा सब कुछ चल तो रहा था पर बहुत ठीक ठीक नहीं चल पा रहा था।  लिहाज़ा राज्य की जनता कुछ परवर्तन चाहती थी।  और ऐसे ही वक़्त में राज्य में एक धूर्त आ गया उसके साथ उसके कुछ साथी भी थे वे भी उसी की तरह
धूर्त थे।  उन लोगों ने जनता से कहा तुम लोग जिनको अपना राजा और मंत्री मानते हो वो कितने बड़े मूर्ख और स्वार्थी हैं।  आप हमें अपना राजा बनाओ मै तुम लोगों को विकास के रथ पे बैठा के जन्नत ले जाऊँगा।  तुम्हे हर वो चीज़ दूंगा जो तुम्हारी ख्वाहिश है तुम्हे बड़े बड़े महल दूंगा , तुम्हे सोने के हवाई जहाज़ दूंगा तुम्हारे हर एक खजाने में लाखों लाख रुपये दूंगा।  तुम्हे ये दूंगा तुम्हे वो दूंगा।  आदि आदि।
बिचारी भोली भाली जनता उन धूर्तों के जाल में आ गयी और उस धूर्त को अपना राजा और धूर्तों के साथियों को मंत्री पद पे बैठा दिया।