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Monday 31 December 2018

काँच की तरह कुछ चटका हुआ तो है

काँच की तरह कुछ चटका हुआ तो है
दिल के अंदर कुछ तो टूटा हुआ तो है

गिनता हूँ तो सारे असबाब हैं फिर भी
तुम्हारे पास मेरा कुछ छूटा हुआ तो है

समेट लिया है हमने, अपने आप को
वज़ूद में अपने कुछ बिखरा हुआ तो है

चाँद भी वही सूरज भी वही तारे वही हैं
बाद दिसम्बर के कुछ बदला हुआ तो है 

हँसता है मुस्कुराता है, बतियाता भी है
लगता है मुकेश खुद से रूठा हुआ तो है

मुकेश इलाहाबादी ----------------

मौन समर्पण के कागज़ पे लिखूँगा

मौन समर्पण के कागज़ पे लिखूँगा
इक ख़त  तुम्हारे नाम  से लिखूंगा

सुना! नदी सा कल -कल बहती हो 
तुम्हारे गालों पे लहरों से लिखूंगा

गुलाब सा महकने लगेंगे अल्फ़ाज़ 
ग़ज़ल तुझे बाँहों में ले के लिखूँगा

मुकेश इलाहाबादी ----------------

Friday 28 December 2018

अलविदा 2018

गुज़रते
हुए साल की चादर में
लपेट ली है
दोस्तों का प्यार
अपनों का एहसास
चाहने वालों की बातें
खूबसूरत चेहरे वालों की हंसी 
अपनों का गुस्सा और प्यार 
कुछ खट्टी - कुछ मीठी यादें तुम्हारा गुस्सा
और
इस असबाब को ले के
क़दम बढ़ा दूंगा
साल 2019 की पायदान पे
फिलहाल - अलविदा 2018


मुकेश इलाहाबादी -------------

ईश्क़ , भी महक जाता है तेरी साँसोँ में आ के

ईश्क़ ,
भी महक जाता है
तेरी साँसोँ में आ के
बिन पिये बहक जाता हूँ
तेरी बाँहों में आ के

बेरुखी
सह लेता हूँ ज़माने भर की
पर, ज़न्नत सा महसूस करता हूँ
ख़ुद को तेरी निगाहों में पा के

और ,,,,

दिन गुज़र जाता है
चिलचिलाती धूप में, पर
रात खिलखिला उठती है
तुझे ख्वाबों में पा  के


मुकेश इलाहाबादी -------------

Thursday 20 December 2018

कहीं दुर्गम पहाड़ियां कंही गहरी खाइयाँ हैं

कहीं दुर्गम पहाड़ियां कंही गहरी खाइयाँ हैं
राह में अपनी दुश्वारियाँ  ही  दुश्वारियाँ हैं 

कुछ दूर तो मै  भी ईश्क़ की  राह पर चला
राहे इश्क़ में तो रुस्वाइयाँ ही रुस्वाइयाँ हैं

हमारे पास बैठ के तुम क्या करोगे, मुकेश
पास अपने सिर्फ तन्हाईयाँ ही तन्हाईयाँ हैं

मुकेश इलाहाबादी ------------------------

Wednesday 19 December 2018

अँधेरे की उजाले से यारी कैसे हो


अँधेरे की उजाले से यारी कैसे हो
धूप - छाँह की रिश्तेदारी कैसे हो 

मुफलिसी परेशान है,ये सोच कर
मेहमान की खातिरदारी कैसे हो

अगर बेईमान के हाथ हो फैसला 
फिर सत्य की तरफदारी कैसे हो

झूठे फरेबी जालसाज़ों के शह्र में
तू ही ये बता ईमानदारी कैसे हो

हर इक के अपने अपने मसले हैं
मेरी ये उलझन तू हमारी कैसे हो 

मुकेश इलाहाबादी ----------------

Tuesday 18 December 2018

सर को धड़ से अलग कर दिया है

सर को धड़ से अलग कर दिया है
खुद को छिन्नमस्ता कर लिया है

नीलकंठ बनूँ ऐसा इरादा तो न था
पर उम्र भर ज़हर ही ज़हर पिया है

ज़ख्म मेरे कोई देख न ले,लिहाज़ा
सफाई से हर घाव तुरपाई किया है

इश्क़ तेज़ाब की नदी गल जाऊँगा
फिर भी प्यार किया प्यार किया है

दुनिया के मेले में घूम घूम थका हूँ
तन्हाई में बैठा हूँ यही मेरा ठिया है

मुकेश इलाहाबादी ------------------

Saturday 15 December 2018

बहुत देर से खामोशी से बह रहा था दरिया

बहुत देर से खामोशी से बह रहा था दरिया
मेरे पानी में उतरते ही उफ़ना गया दरिया

सख्त जान समझता रहा उम्र भर जिसको
रात उसी पत्थर के सीने से खूब बहा दरिया

जो पूछा तुम भी इठला के क्यूँ नही बहते हो
सुना चुप रहा हौले से मुस्कुरा दिया दरिया

ईश्क़ की नाव पे बैठ बाँहों के चप्पू चला दिए
फिर तो मेरे साथ खुश खुश खूब बहा दरिया

देर औ दूर तक बहते बहते  थक गया दरिया
मै बन गया समंदर मुझमे समा गया दरिया


मुकेश इलाहाबादी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

Friday 14 December 2018

मुझे अपने दर्दो ग़म का कोइ पता न था

मुझे अपने दर्दो ग़म का कोइ पता न था
मै तो तुम्हारे ख्वाब देख रहा था,खुश था

तुम बाएँ हो के बैठे, मेरी कीमत बढ़ गयी
उसके पहले तलक तो मै फक्त सिफर था

तुमने होश दिलाया तो जा के होश आया 
वर्ना मुझे क्या मालूम था  मै किधर था

मुकेश इलाहाबादी ------------------------

काँच का दिल ले पत्थरों से ज़ोर आजमाईश न कर

काँच का दिल ले पत्थरों से ज़ोर आजमाईश न कर
बेदिल लोगों का शहर है ये तू कोई फरमाईश न कर

मुकेश यहां कोई तुम्हारी चोट पे मरहम न रक्खेगा
लिहाज़ा अपने ज़ख्मो की इस तरह नुमाईश न कर

मुकेश इलाहाबादी -------------------------------------

Wednesday 12 December 2018

काश मेरा भी हुआ करे कोई


काश मेरा भी हुआ करे कोई
मेरे लिए भी दुआ करे कोई 

न ही मै मिलूं न मै याद करूँ
पर मेरे लिए तड़पा करे कोई 

दुश्मन तो मेरे बहुत सारे हैं
अपना समझ लड़ा करे कोई

जब कभी फुरसत दे ज़िंदगी
बगलगीर हो, बैठा करे कोई

हाथ तो सभी मिला लेते हैं 
दिल से भी मिला करे कोई

मुकेश इलाहाबादी ---------

वो ख़रामा ख़रामा अपने सफर में था

वो ख़रामा ख़रामा अपने सफर में था
मै भी चुपचाप उसके रहगुज़र में था

मै उसकी निगाहों में कंही भी न था 
मगर वो मुद्दतों से मेरी नज़र में था

दरिया में हम दोनों साथ ही उतरे थे
वो पार हो गया, मै बीच भंवर में था

जिन दिनों मै गुमनामियों में डूबा था 
उन  दिनों वो शह्र की हर ख़बर में था

चाहता तो मुझसे भी मिल सकता था
सुना है वो कल तलक मेरे शहर में था

मुकेश इलाहाबादी ---------------------

Tuesday 11 December 2018

अजब, तरह से इक़रार करती हो

अजब,
तरह से इक़रार करती हो
आँखों से हाँ
होंठो से इंकार करती हो

कभी शोखी,
कभी अदा
कभी सादगी 
हज़ारों  तरीकों से बेकरार करती हो

कभी हंस के
कभी मुस्का के
कभी चुप रह के
महफ़िल को गुलज़ार करती हो

मुकेश इलाहाबादी ----------------

Sunday 9 December 2018

कुछ तमन्नाएँ कुछ फरियाद ले कर

कुछ तमन्नाएँ कुछ फरियाद ले कर
जी रहा हूँ,सिर्फ तुम्हारे ख़्वाब ले कर

सोचा था इक घर बसाऊँगा तेरे साथ
जा रहा हूँ अपना दिल बर्बाद ले कर

अब तक तो बहा खामोश दरिया सा
आज के बाद मै बहूँगा सैलाब ले कर

वैसे तो पीने का मुझे कोई शौक़ नहीं
आज मै पिऊँगा तुम्हारा नाम ले कर

ग़मे ईश्क़ भर होता तो मै सुना देता
कहाँ जाऊँ मै अपने ग़म हज़ार ले कर

मुकेश इलाहाबादी -------------------

Friday 7 December 2018

अपनी पलकें झुका के देखो

अपनी पलकें झुका के देखो
इश्क़ का काजल लगा के देखो


मै भी फूलों सा महकूँगा गर
मुझको अपने गले लगा के देखो

मौसम सावन भादों हो जाएगा
अपने भीगे गेसू लहरा के देखो

स्याह रातें चाँदी सा चमकेंगी
बस तुम थोड़ा सा मुस्का के देखो

ये उदास दिल मेरा खुश हो जाएगा
इक बार अपने पास बुला के देखो

मुकेश इलाहाबादी,,,,,, ,

Tuesday 4 December 2018

मुझको झूठी तसल्ली दे के गया

मुझको झूठी तसल्ली दे के गया
वो लौट कर आएगा कह दे गया

मै मुफ़लिस मेरे पास कुछ न था
जो चैनो शुकूँ था, वो भी ले गया

मैंने समझा,मुझे पार ले जाएगा
चढ़ी नदी नाव मै ख़ुद खे के गया

जी तो न था बेवफा से मिलने का
दिल से मज़बूर था इस लिये गया

लड़ लेता झगड़ लेता ग़म न होता
ग़म ये मुझे अनदेखा कर के गया

मुकेश इलाहाबादी -----------------