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Friday 28 December 2018

ईश्क़ , भी महक जाता है तेरी साँसोँ में आ के

ईश्क़ ,
भी महक जाता है
तेरी साँसोँ में आ के
बिन पिये बहक जाता हूँ
तेरी बाँहों में आ के

बेरुखी
सह लेता हूँ ज़माने भर की
पर, ज़न्नत सा महसूस करता हूँ
ख़ुद को तेरी निगाहों में पा के

और ,,,,

दिन गुज़र जाता है
चिलचिलाती धूप में, पर
रात खिलखिला उठती है
तुझे ख्वाबों में पा  के


मुकेश इलाहाबादी -------------

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