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Friday 30 November 2012

मंज़र हम ये हर सिम्त देखते हैं

 मंज़र हम ये हर सिम्त देखते हैं
लोगों के चेहरे पे शिकन देखते हैं 


कोशिश कर के देखूं भी तो दूर,,,
बहुत दूर उम्मीदे किरन देखते हैं 


मुकेश इलाहाबादी ----------------- 

धुंध है शाम-ओ-सहर की

धुंध है शाम-ओ-सहर की
बेचैनिया आठों पहर की

कि दिल अब मानता नहीं
की हमने मुद्दतों सबर की 

वो अभी तक आये नहीं,की
हमने कासिद से खबर की

ले जायेगी मुझे किस ठांव
अब तो ये मर्जी है लहर की

है हर कोई हस्ती में उदास,
सिर्फ यही है खबर शहर की

मुकेश इलाहाबादी -----------

इबादत में उनकी हम मोम बन पिघल गए




इबादत में उनकी हम मोम बन पिघल गए
वो पत्थर के सनम थे पत्थर ही रह गए
मुकेश इलाहाबादी ----------------------------

हम तो तेरी खामोश सदा भी सुन लेते

 
 
 
 
हम तो तेरी खामोश सदा भी सुन लेते
तुमने इशारा तो शिद्दत से किया होता ?
मुकेश इलाहाबादी --------------------------

Thursday 29 November 2012

राख में दबे शोलों को क्यूँ तुमने हवा दी ?

राख में दबे शोलों को क्यूँ तुमने हवा दी ?
अब संभालो अपना दामन क्यूँ तुमने हवा दी ?

पसीने से तरबतर थका बहुत था, अब तो,
सो गया मुसाफिर आँचल से क्यूँ तुमने हवा दी ?

रुस्वाइयां ज़माने में जो इतनी हो रही हैं,थी
बात अपने दरम्याँ की इतनी क्यूँ तुमने हवा दी ?  

मुकेश इलाहाबादी -------------------------------
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वफ़ा जिनकी आखों में थी वो रहे उम्र बहर परदे में,






वफ़ा जिनकी आखों में थी वो रहे उम्र बहर परदे में,
जो बेवफा थे कम से कम हमसे मिलने तो आये !!!
मुकेश इलाहाबादी ----------------------------------------

हम तेरी बेवफाई को सर आखों में लिए फिरते हैं, न दी




हम तेरी बेवफाई को सर आखों में लिए फिरते हैं, न दी 
तूने मुहब्बत तो ज़िन्दगी भर के लिए तोहफा तो दिया
मुकेश इलाहाबादी -------------------------------------------

आ तेरे हंसी चेहरे पे लबे जाम रख दूं ,






आ तेरे हंसी चेहरे पे लबे जाम रख दूं ,
वस्ल की रात में हिज्र क्या याद रक्खूं
 मुकेश इलाहाबादी -----------------------

फर्क मौसम मे है गुलिस्ताँ मे नहीं



 फर्क मौसम मे है गुलिस्ताँ मे नहीं
वरना बाग़ भी वही मालन भी वही
अब तेरी बेवफाई की क्या चर्चा करें
वरना दिल भी वही जज्बा भी वही
फर्क ज़मी राहू की ज़द में आने से है
वरना सूरज भी वही चन्दा भी वही 








मुकेश इलाहाबादी ------------------

हम तो उनसे भी बड़े तकल्लुफ से पेश आते हैं





हम तो उनसे भी बड़े तकल्लुफ से पेश आते हैं
खामखाँ ज़माना क़ोई गलतफहमी न पाल ले,,
मुकेश इलाहाबादी -------------------------------

वस्ले वक़्त घड़ी भर को आ के चला जाता है





वस्ले वक़्त घड़ी भर को आ के चला जाता है
इक यादें ही तो हैं जो ज़िन्दगी गुज़ार देती हैं
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------

Wednesday 28 November 2012

बाज़ार ऐ इश्क में हमें खरीदार न मिला





बाज़ार ऐ इश्क में हमें खरीदार न मिला
हमने अपनी कीमत वफाओं से आंकी थी

मुकेश इलाहाबादी ------------------------
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जब हो वही कातिल वही मुंसिफ वही मुद्दई,





जब हो वही कातिल वही मुंसिफ वही मुद्दई,
बताओ उस अदालत में फैसला हो तो कैसे हो ?

मुकेश इलाहाबादी -----------------------------

सच की किताब पढ़ गया हूँ,


 सच की किताब पढ़ गया हूँ,
वक़्त की सूली पे चढ़ गया हूँ

अंजाम चाहे कुछ भी हो ले,,
अब तो मंजिल पे बढ़ गया हूँ  

नक्काशी कोई न कर पाये कि
गुम्बदे इश्क ऐसा गढ़ गया हूँ

गुले जीस्त की बदनशीबी मेरी
अपनी ही मज़ार पे चढ़ गया हूँ 



मुकेश इलाहाबादी ---------------

काफिया तो हम भी थे मुकम्मल बहुत,




काफिया तो हम भी थे मुकम्मल बहुत,
ग़ज़ल में हमको किसी ने ढाला ही नहीं
मुकेश इलाहाबादी ---------------------

कूचा ऐ हुश्न से गुज़र के हमने जाना





कूचा ऐ हुश्न से गुज़र के हमने जाना
कितने कातिल इस शहर में रहते हैं
मुकेश इलाहाबादी --------------------

Tuesday 27 November 2012

जब तक ह्शरते उफान पे थी

जब तक ह्शरते उफान पे थी
ज़िन्दगी हमारी तूफ़ान पे थी 

नतीज़ा अच्छा  नहीं होगा,,,,
वरना सच्ची बात जुबां पे थी

सिरफिरों ने उसकी जाँ ले ली
आस्था उसकी पुरान  में थी 

हमारी मुट्ठी में भी जँहा था
जब जवानी पूरी उठान पे थी

मरते मरते मर गया  सेठ,,,
पर जाँ तो उसकी दूकान पे थी

अलग से ------
 

समंदर बहा ले गयी सब कुछ,,
जब कश्ती हमारी मुकाम पे थी
 

मुकेश इलाहाबादी -------------

खफा हुए थे ये सोच कर




खफा हुए थे ये सोच कर
कि तुम मना लोगे हमें
हमें क्या खबर थी, कि,
तुम भी हम सा जिद्दी हो
मुकेश इलाहाबादी -----

सजाये हैं हमने जो दिले गुलदस्ते में फूल,



  
सजाये हैं हमने जो दिले गुलदस्ते में फूल,
बिन के लाये हैं अपना बिखरा हुआ वजूद
मुकेश इलाहाबादी -------------------------

अच्छा किया जो अपने गुनाहों को मेरे नाम कर दिया




अच्छा किया जो अपने गुनाहों को मेरे नाम कर दिया
हम भी तुझे मासूम और बेदाग़ देखना चाहते थे ------
मुकेश इलाहाबादी ---------------------------------------

Monday 26 November 2012

जिगर चाक हुआ जाता है ज़ख्मो से






जिगर चाक हुआ जाता है ज़ख्मो से
एक हम है की मुहब्बत किये जाते हैं
मुकेश इलाहाबादी -------------------

हम इजहारे मुहब्बत भी करें तो वे परेशान हो जाते हैं




हम इजहारे मुहब्बत भी करें तो वे परेशान हो जाते हैं
एक हम हैं उनके हाथो क़त्ल हो के भी ऊफ नहीं करते
मुकेश इलाहाबादी --------------------------------------

इतनी सफाई से क़त्ल करते हैं, मेहरबाँ





इतनी सफाई से क़त्ल करते हैं, मेहरबाँ
कतरा ऐ खून न पाओगे उनके खंज़र में
मुकेश इलाहाबादी ----------------------

ज़िन्दगी हादसों के बगैर पूरी हो नहीं सकती



 
ज़िन्दगी हादसों के बगैर पूरी हो नहीं सकती
इंसा वो है जो हादसों में भी हंस के गुज़र जाए
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------

कभी उसके सीने पे अपना दिल रख के तो देखो





कभी उसके सीने पे अपना दिल रख के तो देखो
तेरे हर दुःख दर्द को अपना न बना ले तो कहना
मुकेश इलाहाबादी --------------------------------

माना कि तेरे शहरे दिल में सिर्फ वो ही रहता है,,





माना कि तेरे शहरे दिल में सिर्फ वो ही रहता है,,
पर उससे  रिश्ता तो तुमने अजनबी सा ही रक्खा
मुकेश इलाहाबादी ---------------------------------

Sunday 25 November 2012

मोम के घर में सूरज उगाये बैठे हैं


मोम के घर में सूरज उगाये बैठे हैं
अपना तन और मन जलाए बैठे हैं

हम भी अजब तबियत के इंसां हैं,
बूते संगमरमर से दिल लगाये बैठे हैं

लिखी थी जो कभी किताबे मुहब्बत
आज वही हर्फ़ दर हर्फ़ मिटाए बैठे हैं

न मैखाना, न किसी दरिया में  मिटी 
ये कैसी आदिम प्यास जगाये बैठे है



मुकेश इलाहाबादी -------------------

Friday 23 November 2012

मियाँ मुहब्बत वो शै नहीं जो कंही सीखी जाए है




 
मियाँ मुहब्बत वो शै नहीं जो कंही सीखी जाए है
ये तो वो फलसफा है जो खुद ब खुद आ जाये है !
मुकेश इलाहाबादी ---------------------------------

तुम कितना ही दबे पाँव मेरे कूचे से गुज़र जाओ,

तुम कितना ही दबे पाँव मेरे कूचे से गुज़र जाओ,
तेरी आहट हम साँसों की रफ़्तार से समझ जाते हैं
मुकेश इलाहाबादी --------------------------------

हम बार तुम ही रूठो अच्छा नहीं लगता




हम बार तुम ही रूठो अच्छा नहीं लगता
अब हमने भी या अदा सीख ली है ------
मुकेश इलाहाबादी ------------------------

दे तो दूं मौक़ा ऐ इंतज़ार उम्र भर का




दे तो दूं मौक़ा ऐ इंतज़ार उम्र भर का
पहले इक लम्हा मुलाक़ात का तो दे ,
मुकेश इलाहाबादी -----------------------

हम तो हया से सर झुकाए हुए थे ,,,




हम तो हया से सर झुकाए हुए थे ,,,
वो समझे कि हम उनकी बंदगी में हैं
मुकेश इलाहाबादी -------------------

Thursday 22 November 2012

हम भी अपनी शायरी में नाज़ुकी ले के आये हैं,,,




हम भी अपनी शायरी में नाज़ुकी ले के आये हैं,,,
कल कुछ हुस्न वालों से मुलाक़ात कर के आये हैं
वो फूल बन के महका किये सरे आम गुलशन में
हम भी भँवरे सा उनके इर्द गिर्द मंडरा के आये हैं
मुकेश इलाहाबादी ----------------------------------

आज मेरा वजूद महका महका सा है,


आज मेरा वजूद महका महका सा  है,
फूल  ने हमसे झुक के सलाम किया है
मुकेश इलाहाबादी --------------------

बूँद बूँद अपना आँचल भरता है बादल


बूँद बूँद  अपना आँचल भरता है बादल
फिर दिल खोल के बरस जाता है बादल

मेरी आखों के फलक में भी है एक बादल
कितने समंदर लिए फिरता है ये  बादल 

ज़मी की तरह जब भी कोई बिछ जाए है
रिमझिम रिमझिम बरस जाता है बादल

 


मुकेश ईलाहाबादी ------------------------

कितना भी पर्दा कर लो क्या फर्क पड़ता है




कितना भी पर्दा कर लो क्या फर्क पड़ता है
कभी तो नकाब सरकेगा और दीदार होंगे !
मुकेश इलाहाबादी ------------------------

ये राज़ कि 'हम बड़े वो हाँ' छुपा के क्यूँ रखते हो ?



ये राज़ कि 'हम बड़े वो है, छुपा के क्यूँ  रखते हो ?
जब हम तेरे हो गए तो हमसे बता क्यूँ नहीं देते हो
मुकेश इलाहाबादी ------------------------------------

Wednesday 21 November 2012

तू बता न बता हम तेरा चेहरा पढ़ लेते हैं




तू बता न बता हम तेरा चेहरा पढ़ लेते हैं
तू कब हंसती है या कब रो के आई है ----
मुकेश इलाहाबादी ---------------------------

आप गुफ्तगू सिर्फ हमसे किया कीजे




आप गुफ्तगू सिर्फ हमसे किया कीजे
हम तुम्हारे लिए दुनिया बन जायेंगे!
मुकेश इलाहाबादी ------------------

गर मुहब्बत है हमसे फिर देरी क्यूँ इजहारे मुहब्बत में




गर मुहब्बत है हमसे फिर देरी क्यूँ  इजहारे मुहब्बत में
तुम भी इंतज़ार से बच  जाओगी हम भी बेकरार न होंगे
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------------------

कुछ कह तो नहीं सकते, पर तकलीफ बहुत होती है,,,


कुछ कह तो नहीं सकते, पर तकलीफ बहुत होती है,,,
चाहत पे हमारी जब आप फक्त मुस्कुरा  के चल देते हैं 
मुकेश इलाहाबादी --------------------------------------

मैंने तो बस तेरी बेरुखी का इशारा किया,




मैंने तो बस तेरी बेरुखी का इशारा किया,
और तुम हो कि क्या से क्या समझ बैठे
मुकेश इलाहाबादी ------------------------

यूँ चुप रह के भी कब तलक काटोगे ज़िन्दगी ?




यूँ चुप रह के भी कब तलक काटोगे ज़िन्दगी ?
मुझसे न सही मेरी यादों से तो गुफ्तगू कर लो
मुकेश इलाहाबादी ----------------- ------------

जिस दिन तेरी चाहत का दरिया सूखेगा





जिस दिन तेरी चाहत का दरिया सूखेगा
खुदा कसम मै सहरा में बदल जाऊंगा !!
मुकेश इलाहाबादी -----------------------

तेरे बगैर कट गयी ज़िन्दगी





तेरे बगैर कट गयी ज़िन्दगी
कुछ और भी कट ही जायेगी
मुकेश इलाहाबादी -----------

वो तो दिल के हाथो मज़बूर हो गए वर्ना



 
वो तो दिल के हाथो मज़बूर हो गए वर्ना 
हम कूचा ऐ मुहब्बत कब के छोड़ चुके थे
मुकेश इलाहाबादी -----------------------

Tuesday 20 November 2012

तुम मुझे भुला दो ऐसी भी कम मेरी मुहब्बत नहीं ,,,,,




तुम मुझे भुला दो ऐसी भी कम मेरी मुहब्बत नहीं ,,,,,
मुकेश इलाहाबादी ---------

हम तो गुफ्तगू भी न कर सके उनसे,,



हम तो गुफ्तगू भी न कर सके उनसे,,
मिल के उनसे आंसू मेरे थमते ही न थे
मुकेश इलाहाबादी ------------------

छुप छुप के वो देखते हैं, कि हम उन्हें ही ढूंढते हैं ,,





छुप छुप के वो देखते हैं, कि हम उन्हें ही ढूंढते हैं ,,
उनके लिए खेल ठहरा,हमारे तो जान पे बन आयी
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------------

हम तो गुमसुम से हो गए थे तुझे देख लेने के बाद,





हम तो गुमसुम से हो गए थे तुझे देख लेने के बाद,
वो तो तुम ही हो जो बोलने को उकसाया करती हो
मुकेश इलाहाबादी ----------------------------------

एक लम्हा भी मुहब्बत का सदी बन जाती है



  एक लम्हा भी मुहब्बत का सदी  बन जाती है
एक बार तबियत से मुहब्बत कर के तो देखो
मुकेश इलाहाबादी ---------------------------