राख में दबे शोलों को क्यूँ तुमने हवा दी ? अब संभालो अपना दामन क्यूँ तुमने हवा दी ? पसीने से तरबतर थका बहुत था, अब तो, सो गया मुसाफिर आँचल से क्यूँ तुमने हवा दी ?
रुस्वाइयां ज़माने में जो इतनी हो रही हैं,थी बात अपने दरम्याँ की इतनी क्यूँ तुमने हवा दी ?
No comments:
Post a Comment