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Tuesday 26 February 2019

सीने में तीर सा चुभाती रही

 
सीने में तीर सा चुभाती रही
हवा रातभर सनसनाती रही

रेत् पे तेरा नाम लिखता रहा
लहरें आ आ के मिटाती रही

कैसे कहूँ मौसमे दर्द में भी
यादें तेरी लोरी सुनाती रही

बहुत कोशिश की भूल जाऊं
रह - रह तेरी याद आती रही

मुकेश इलाहाबादी -----------

हरा भी हमारा केशरिया भी हमारा सफ़ेद हमारा है

 
हरा भी हमारा केशरिया भी हमारा सफ़ेद हमारा है
कन्याकुमारी से कश्मीर तक हिंदुस्तान हमारा है

पाकिस्तान अब तक बहुत सही तेरी गुस्ताखियां
तू बाज नहीं आया तो समझाना भी फ़र्ज़ हमारा है

अभी भी वक़्त है सुधर जाओ पाकिस्तान वरना ये
छब्बीस फरवरी का हमला तो बस ट्रेलर हमारा है

तेरे सवा लाख सैनिक पे हमारा एक सैनिक भारी
महाराण प्रताप गुरुगोविंद जैसा सैनिक हमारा है

ऐ पाकिस्तानियों भाई सा रहोगे तो प्यार पाओगे
दुश्मनी करोगे तो बच न पाओगे ये वचन हमारा है 

मुकेश इलाहाबादी -----------------------------------

Monday 25 February 2019

पत्थर भी प्यासे होते होंगे

यकीनन
पत्थर भी प्यासे होते होंगे
तभी
सीने में दरिया
और झील बहाते होंगे

आब
की ही मुहब्बत में तो
ये पत्थर दरिया संग बह बह कर
टूटते होंगे
पर्वत से पत्थर
पत्थर से कंकर
कंकर से रेशा - रेशा टूटकर रेत् बनते होंगे
फिर किसी प्रेमी के सीने में सहरा बन बहते होंगे

कि - यकीनन पत्थर भी प्यासे होते होंगे

मुकेश इलाहाबादी -------

Sunday 24 February 2019

जब से आसमान पे पहरे हैं

जब से आसमान पे पहरे हैं
परिंदे भी उड़ान से डरते हैं

अब शेर भालू चिता गीदड़
जंगल नहीं शह्र में रहते हैं

कोइ  दवा काम न आएगी
हमारे ज़ख़्म बहुत गहरे हैं

यहाँ ज़िंदगी कौन जीता है
किसी तरह बसर करते हैं

ईश्क़ रेत् की नदी है हम
इसी में शबोरोज़ बहते हैं

मुकेश इलाहाबादी --------

Wednesday 20 February 2019

तुम्हारे बाकी साथी इसका बदला गिन गिन का लेंगे



शेष तुम्हारे साथी  बदला गिन गिन  'के'  लेंगे
पुलवामा के वीर शहीदों ये कुर्बानी व्यर्थ न होने देंगे

हम कवि वाणी में ओज भरेंगे, माताओं की  कोख से शूरवीर जन्मेगें

जब तक बदला पूरा न हो,   चैन  से   न  बैठेंगे

छोड़ गए हो अपने पीछे, पत्नी बच्चे मात -पिता
अपने भरसक हमसब उनको, दुःख न  होने  देंगे

भावों से पुरनम श्रद्धांजलि, स्वीकार  हे वीर जवानो

गुरू,मात, पिता के  रहे ऋणी हम, अब  ऋणी  तुम्हारे भी  होगें ।।


मुकेश इलाहाबादी ---------------------------------------
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------------------


पत्नी बच्चों का सुख, माँ-बाप का प्रेम अपनी जान कर दिया है

पत्नी बच्चों का सुख, माँ-बाप का प्रेम अपनी जान कर दिया है
घर की रोटी और अपनों का साथ, सब कुछ कुर्बान कर दिया है

अफ़सोस दुश्मनो और आतंकवादियों को ख़त्म नहीं कर पाए,
पर अपने सैनिक साथियों संग दुश्मन को हलकान कर दिया है

ख्याल रखना हमने अपनी पत्नी बच्चे आप के हाथ कर दिया है
अपनी ज़िंदगानी अपनी आखिरी साँस  देश के नाम कर दिया है

मुकेश इलाहाबादी --------------------------------------------------

Friday 15 February 2019

बाप - दादों की निशानी अच्छी लगती है

बाप - दादों की निशानी अच्छी लगती है
घर में कुछ चीज़ें पुरानी अच्छी लगती है

बच्चे कित्ता ही चम्पक चंदामामा पढ़ लें
उनको नानी की कहानी अच्छी लगती है

राष्ट्र को सूरत नही जिस्मानी ताकत नहीं 
भगत सिंह जैसी जवानी अच्छी लगती है 

हम रूहानी इश्क़जादे हैं हमें खूबसूरत नहीं
हमें  तो मीरा सी दीवानी अच्छी लगती है

मुकेश जिस्म की बात कभी करते नहीं हम 
हमको तो मुहब्बत रूहानी अच्छी लगती है

मुकेश इलाहाबादी --------------------------

Thursday 14 February 2019

हंगामा मचा रहता है मेरे सीने में

हंगामा मचा रहता है मेरे सीने में 
कोई है जो चीखता है मेरे सीने में  

न सूरज न चाँद न सितारे है फिर    
कौन रोशनी रखता है मेरे सीने में  

रात होते ही बर्फ सा जम जाता हूँ 
दिन बर्फ सा गलता है मेरे सीने में

रह रह के चीख पड़ते हैं मेरे ज़ख्म
कौन है अंगार रखता है मेरे सीने मे

इस दिल मकाँ में कोई रहता नहीं 
फिर कौन टहलता है मेरे सीने में 

मुकेश इलाहाबादी --------------

Tuesday 12 February 2019

ये जिस्म है कि मोम गलता जा रहा है


ये जिस्म है कि मोम गलता जा रहा है 
कुछ तो है जिस्म में, जलता जा रहा है 

न लहरें हैं अब न ज्वार भाटा आता है 
जिस्म का समन्दर जमता जा रहा है  

जैसे जैसे रोशनी का सफर तय किया 
अँधेरा अंदर ही अंदर बढ़ता जा रहा है 

न  इधर मंज़िल दिखाई दे न ही उधर 
फिर भी कारवाँ है कि बढ़ता जा रहा है 

तूफ़ान के आगे हैसियत कुछ भी नहीं 
चराग है कि अँधेरे से लड़ता जा रहा है 

मुकेश इलाहाबादी ---------------------

Thursday 7 February 2019

सुबह होते ही

एक
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सुबह
होते ही सज जाती हैं
झूठ की चमकीली दुकाने
और सच ठिठका खड़ा है
फुटपाथ पे अपनी ठेलिया लिए दिए 

दो
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सुबह
होते ही जेब में
उम्मीद का सिक्का ले कर
चल पड़ता हूँ दुनिया के हाट में
दिन भर चिमकीली दुकानों को
देखने और हाट में घूमने के बाद
सांझ लौट आता हूँ
झोले में ढेर सारी निराशाओं को लिए दिए

मुकेश इलाहाबादी -----------------------

Wednesday 6 February 2019

दुपहरिया सूनसान सड़क पे

दुपहरिया
सूनसान सड़क पे 
धूप की चादर तनी हो
पसीना चुह चुहा रहा हो
तनबदन पे
अचानक
बदरिया बन छा जाओ
तुम,
बरसो खूब बरसो
मै भीगता रहूँ
देर तक बहुत देर तक
जब तक ये सूनी सड़क पार न हो जाए
तब तक

या, 
कि ऐसा हो
किसी दिन मै घुल जाऊँ
हवा में
और लिपट जाऊँ
तुम्हारे इर्दगिर्द खुशबू सा 

सच ! सुमी ऐसा हो तो कैसा हो ????

मुकेश इलाहाबादी -----------------------

Tuesday 5 February 2019

किसी दिन ऐसा हो तो कैसा हो ??

फूल खिलें
और ! खिले ही रह जाएं
अपनी खुशबू और ख़ूबसूरती लिए दिए

सुबह ! सूरज की किरणों के उतरने के साथ ही
बुलबुल मुंडेर पे आ बैठे
पंचम सुर में गाए और
गाती ही रहे अनंत काल तक

ठीक उसी वक़्त
जब तुम मुझसे मिलने आई हो
हर साल की तरह बसंत आये
और ठिठक जाए द्वारे मेरे

या कि, ठीक उसी वक़्त
जब मै मल रहा होऊँ गुलाल
तुम्हारे गालों पे
फागुन आये और ठहर जाए
जैसे खिल के ठहर गया है
ये काला तिल तुम्हारे गालों पे

हमेशा - हमेशा के लिए

सच ! सोचो सुमी किसी दिन
ऐसा हो तो कैसा हो ??

मुकेश इलाहाबादी -----------------------

Monday 4 February 2019

तुम्हारी , यादें

तुम्हारी ,
यादें 'व्हाट्स ऐप ' के मेसेज नहीं 
जिन्हे डिलीट कर
दुसरे के मेसेज सेव कर लूँ

तुम्हारी हंसी
कोई इमोजी नहीं जिसे
जिसे फॉरवर्ड कर
किसी और के साथ शेयर कर सकूँ

और - अगर तुम्हारी यादें
खूबसूरत मेसेज 
और मेरा दिल एंड्रॉइड फ़ोन
तो तुम्हारी यादों के मेसेज
मेरे वो प्राइवेट मेसज हैं
जिन्हे मै हरगिज़- हरगिज़ शेयर नहीं कर सकता
किसी से भी कभी भी

ये बात कान खोल कर सुन लो
और समझ लो
मेरी सुमी !
मेरी प्यारी सुमी

मुकेश इलाहाबादी ---------------------

Sunday 3 February 2019

शहर का अपने हाल पढ़ रहा है

शहर का अपने हाल पढ़ रहा है
जलता हुआ अख़बार पढ़ रहा है

वो अपने  चेहरे की झुर्रियों में
उम्र - भर की थकन पढ़ रहा है

मुफ़लिस कभी अपनी बीमारी
कभी दवा का दाम पढ़ रहा है

किताब के बोझ से दबे बेटे की
पीठ पे बाप भविष्य पढ़ रहा है

तुम्हारी मुस्कुराती खामोशी में 
मुक्कु अपना  नाम  पढ़ रहा है

मुकेश इलाहाबादी -------------

Saturday 2 February 2019

लोहा और नमक

तुम
थामे रहोगे अपने घर की छत
और दीवारें
बने रहोगे आधारस्तम्भ
अपने राष्ट के
अपने समाज के
जब तक बचा रहेगा
बना रहेगा तुम्हारे जिस्म का लोहा
लिहाज़ा -
ज़िंदगी से लोहा लेते रहा करो - मेरे यार

अपने
अंदर के समंदर को हरहराने दो
उसमे ज्वार -भाटा आते रहने दो
इसे सूखने मत दो
क्यों कि समंदर में नमक होता है
और नमक से ही जीवन में स्वाद होता है

इसलिए - अपने समंदर को सूखने मत दीजिये
और नमक को बचाए रखिये



मुकेश इलाहाबादी ---------------


Friday 1 February 2019

वही शख्श मुझको रुला के गया

वही शख्श मुझको रुला के गया
जो व्यक्ति मुझको हंसा के गया

कभी झील तो कभी दरिया बना
हर बार मेरी प्यास बुझा के गया

सोचा था चुप रहूँगा उम्रभर मगर
मेरे होठों पे सरगम सजा के गया

रेत् पे चित्र बनाए, साथ जिसके
वही तेज़ हवा बन मिटा के गया 

धोखा दे के गया, कोईं बात नहीं 
वो दुनियादारी तो सीखा के गया

मुकेश इलाहाबादी ---------------