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Sunday, 3 February 2019

शहर का अपने हाल पढ़ रहा है

शहर का अपने हाल पढ़ रहा है
जलता हुआ अख़बार पढ़ रहा है

वो अपने  चेहरे की झुर्रियों में
उम्र - भर की थकन पढ़ रहा है

मुफ़लिस कभी अपनी बीमारी
कभी दवा का दाम पढ़ रहा है

किताब के बोझ से दबे बेटे की
पीठ पे बाप भविष्य पढ़ रहा है

तुम्हारी मुस्कुराती खामोशी में 
मुक्कु अपना  नाम  पढ़ रहा है

मुकेश इलाहाबादी -------------

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