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Monday 17 December 2012

दिन आफताब रात महताब चाहिए


 


दिन आफताब रात महताब चाहिए
थोडी सी तपन थोड़ा सा आब चाहिए

सिर्फ हकीकत से काम चलता नहीं
जिंदगी के लिए कुछ ख्वाब चाहिये

मुकेश इलाहाबादी --------------------

क्या हुआ जो गिरती रही ज़र्द पत्तियाँ





क्या हुआ जो गिरती रही ज़र्द पत्तियाँ कब्र पर मेरी
हम ये समझे कि चलो मज़ार को नई चादर मिली !
मुकेश इलाहाबादी ----------------------------------

Friday 7 December 2012

मुहब्बत करना फिर भूल जाना हमारी आदत नहीं,ये




मुहब्बत करना फिर भूल जाना हमारी आदत नहीं,ये
शौक होगा कुछ मनचलों का हम उनमे शामिल नहीं !
मुकेश इलाहाबादी --------------------------------------

हम तेरी फितरते आवारगी जान चुके हैं




हम तेरी फितरते आवारगी जान चुके हैं
अब तू मेरा इंतज़ार हरगिज़ न किया कर
मुकेश इलाहाबादी ------------------------

कमबख्त मुहब्बत ऐसा नशा है ज़नाब,





कमबख्त मुहब्बत ऐसा नशा है ज़नाब,
न चाहते हुई भी शराबी बना ही देता है
मुकेश इलाहाबादी ---------------------

हारी हुई बाजियां हमको देती हैं तसल्लियाँ ,,,,





हारी हुई बाजियां हमको देती हैं तसल्लियाँ ,,,,
खेल तो बेहतर था, बसचालाकियां न थी हममे
मुकेश इलाहाबादी ------------------------------

Thursday 6 December 2012

हमारे चेहरे पे ये जो रौनक देखते हैं आप,




हमारे चेहरे पे ये जो रौनक देखते हैं आप,
ये और कुछ नहीं आपकी परछाई हैं जनाब
मुकेश इलाहाबादी --------------------------

बर्फ में भी आग हुआ करती है,

बर्फ में भी आग हुआ करती है,
महसूस हुआ तेरा चेहरा छू के
मुकेश इलाहाबादी -------------

Wednesday 5 December 2012

वक़्त कर रहा वार रिश्तों में



 

वक़्त कर रहा वार रिश्तों में
घर बार टूट रहे हैं किश्तों में
अब फूल नहीं खिलते प्रेम में
काई सी जम गयी है रिश्तों में
मुकेश इलाहाबादी ----------

गर एहसास ऐ नाज़ुकी को ज़ख्म कहते हो,

 
 
गर एहसास ऐ नाज़ुकी को ज़ख्म कहते हो,
तो हाँ ज़ख्म हमने दिए हैं, दिए हैं , दिए हैं
मुकेश इलाहाबादी --------------------------

एक तो तुम,

 
एक तो तुम,
पहले से ही प्यारे हो
फिर इतना सज संवर के आते हो,
हमने की है क्या ऐसी खता  ?????
जो इतना ज़ुल्म किये  जाते हो 







मुकेश इलाहाबादी ------------------
 








 

Tuesday 4 December 2012

ये सच है - तुम जितना तफसील से

ये सच है -
तुम जितना तफसील से
और शिद्दत से
मेरे बारे में सोचती हो
शायद मै  उतना नहीं सोच पाता 
ऑफिस की आपा धापी में 
या कि 
दोस्तों की महफ़िल में
कहकहे लगाते हुए,
पर ये ज़रूर है
जब कभी मौक़ा मिलता है
कुछ भी सोचने का
चाहे वो ऑफिस जाते वक़्त का हो
या  कि रात के खाना खाने के बाद
तफसील से सिगरते पीने का वक़्त हो
या  कि सुबह शेविंग करने का वक़्त हो
तब तुम आस पास फ़ैली धुप सा
या की,
खुशबू सा
या की हवा सा
या की एक कोमल एहसास सा
ज़ेहन में उतर आती हो
और मुझे कभी उदास हो के तो कभी झटके से
तुम्हारे ख्यालों से निकल के रोज़ मर्रा के कामो में
लगा जाना पड़ता है
सच - मै तुम्हे तुम्हारी तरह शिद्दत से याद नहीं कर पाता
इस बात का गुनाहगार हूँ

मुकेश इलाहाबादी ---------------------------



ये अलग बात हिचकियाँ आप को आती नहीं





ये अलग बात हिचकियाँ आप को आती नहीं
वरना हम तो हर पल याद करते हैं आपको .
मुकेश इलाहाबादी ---------------------------

दर्द मीठा मीठा जगाए रखते हैं,




दर्द मीठा मीठा  जगाए रखते हैं,
तेरे दिए ज़ख्म भी हसीन रहते हैं
जब जब भी हम कांटो सा उगते हैं
आप भी फूलों सा खिला करते हैं
मुकेश इलाहाबादी ---------------

ऐ बेवफा क्यूँ मुड़ रहे हो तुम मेरे शहर की तरफ,





ऐ बेवफा क्यूँ मुड़ रहे हो तुम मेरे शहर की तरफ,
जानता हूँ तेरा आशियाँ है रकीब के घर की तरफ
मुकेश इलाहाबादी --------------------------------

Monday 3 December 2012

तनहा रह गया हूँ सिमटकर,,

तनहा रह गया हूँ सिमटकर,,
रो लेता हूँ अंधेरों से लिपटकर

टूट चुकी, रिश्तो की बैसाखियाँ 
ज़िन्दगी रह गयी हैं घिसटकर

गर्म लावे पर चलता रहा, जब
पाँव के छाले देखते हैं पलटकर

चेहरा उसका भी उदास था, जब
देखा मेरी मैयत नकाब पलटकर



देख कर चाँद की बेवफाई मुकेश,,
आसमा से गिरा,सितारा टूटकर

मुकेश इलाहाबादी -----------------

ये अलग बात तुम ही न समझ पाए उसकी बात





ये अलग बात तुम ही न समझ पाए उसकी बात
इशारा तो उसने भी किया था अपनी मुहब्बत का
मुकेश इलाहाबादी --------------------------------

खुद ही सजते हैं फिर खुद ही शरमाते हैं




 



खुद ही सजते हैं फिर खुद ही शरमाते  हैं
जिनके लिए सजते हैं उन्ही से घबराते हैं
मुकेश इलाहाबादी ------------------------

Sunday 2 December 2012

हया उसकी चुनरी, हया उसका जोबन, हया उसकी आबरू





हया उसकी चुनरी, हया उसका जोबन, हया उसकी आबरू
इशारा के सिवा वो  कैसे कह देती ?'उसे तुमसे मुहब्ब्हत है
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------------------------

पहले जी भर के लूटते हैं,

पहले जी भर के लूटते हैं,
फिर उदासी का शबब पूछते हैं

न इज्ज़त, न दौलत महफूज़
गली गली लुटेरे घूमते हैं

मैखाना बन गया है शहर
हर तरफ रिंद झूमते हैं

खिलने के पहले ही भौरे
कलियों का मुह चूमते  हैं 


दूर  छितिज़ में देखता हूँ
रोज़ कई सितारे टूटते  हैं

मुकेश इलाहाबादी --------------

Saturday 1 December 2012

फलक पे ये जो कहकशां है ?

फलक पे ये जो कहकशां है ?
सितारों ने मिल के बनाया है
हार है खूबसूरत सा,पहन लो
अच्छी लगोगी --------
खिला है चाँद देखो, गोल बिंदी सा
सजा लो माथे पे तुम और भी
अच्छी लगोगी --------
खिले हैं कुछ मोगरा के फूल
मेरे सहन में
सजा लो बालों में 
की तुम और  ----- भी
महकने लगोगी
ये जो खुछ ख्वाब हैं मेरे
मासूम से
पूरे हो जाएँ --- तो ---
सोचता हूँ


फिर तुम और कितनी अच्छी लगोगी

मुकेश इलाहाबादी --------------------------