Pages

Friday 30 October 2015

खालीपन

वही
खालीपन, आज भी है  
जिसे तुम  छोड़ गए हो
अपने जाने के बाद

मुकेश इलाहाबादी ----

Thursday 29 October 2015

खुश्क होठो पे मेरे, आब रख दे


खुश्क होठो पे मेरे, आब रख दे
कुछ और नहीं तो प्यास रख दे
मुद्दतों हुई ये शख्श सोया नहीं
आ पलकों पे मेरे ख्वाब रख दे
सुराही का खम है तेरी अदा में
मेरे लिए भी थोड़ी शराब रख दे
मेरे ख़त का जवाब दे रहे हो तो
अपने सुर्ख होठों की छाप रख दे
आज से मै तुझको सोणी कहूँगा
तू भी नाम मेरा महिवाल रख दे

मुकेश इलाहाबादी ------------

जाने ये कैसी तिश्नगी है जो पीने के बाद भी बढ़ती ही जाए

जाने ये कैसी तिश्नगी है जो पीने के बाद भी बढ़ती ही जाए
मुकेश रातों दिन तेरी सूरत देखूं तो भी तबियत नहीं भरती
मुकेश इलाहाबादी ----------------------------------------------

Wednesday 28 October 2015

कॉंफिडेंट और स्मार्ट लड़कियां

वो,
अपनी पतली उँगलियों के
लम्बे चिकने नाखून पे पॉलिश लगाएगी
जींस के ऊपर
बिन दुपट्टा कुरता पहनेगी
नए डिज़ाइन की चप्पलों के साथ
हाथो में स्मार्ट फ़ोन ले कर चल देगी
ऑफिस, कॉलेज या फिर घूमने ही
बिना हिचक - पूरे कॉन्फिडेंस के साथ
कंधे से कन्धा लड़ा कर भी मेट्रो में
अपनी जगह बना ही लेगी
और घंटो वाहट्स ऎप पे
या कॉल पे बॉय फ्रेंड से
बैफिक्र बतियाती रहेगी
जिसे देखने का कोई मौका न छोड़ते हुए
हम जैसे अधेड़ सोचते और कुढ़ते रहेंगे
हमारे वक़्त कहाँ मर गई थी ऐसी
कॉंफिडेंट और स्मार्ट लड़कियां

मुकेश इलाहाबादी -----------



चर्चा ऐ ईश्क आम हो गया

चर्चा ऐ ईश्क आम हो गया
बैठे बैठाये बदनाम हो गया
लिफाफा खुलते ही ख़त का
मज़मून सरे- आम हो गया
तेरा अदा से यूँ मुस्कुराना
तेरी  हाँ का पैग़ाम हो गया
तूने ज़ख्म सोच के दिए था
मेरे लिए तो इनाम हो गया
मुकेश जलसों की जान था
जाने क्यूँ गुमनाम हो गया
मुकेश इलाहाबादी ---------

एक लम्बी कविता लिखना चाहता हूँ

सुमी,
मै एक लम्बी कविता लिखना चाहता हूँ
इतनी लम्बी, जिसमे समा जाए
तुम्हारे बदन की संदली महक
गुलमोहर सी हंसी
और, ये सलोना सा चेहरा
लिखना चाहूँगा इस लम्बी कविता में
तुम्हारी मासूम बातें
तुम्हारा ज़िद्दीपन
बात बात में रूठना,
फिर खुद ब खुद मान जाना
संजना संवरना
देखना आईने में खुद को
फिर खुद से खुद को देख शरमा जाना
मै सिर्फ यही नहीं लिखूंगा
मै लिखना चाहूँगा
तुम्हारा बिन बात उदास हो जाना
अपने आप खुश हो जाना
और गुनगुनाना
- बड़े अच्छे लगते हैं
  ये नदिया - ये रैना और तुम
और
'तुम' शब्द आते ही, मुझे
देख खिलखिलाना
या फिर शरमा के भाग जाना
घर के सबसे भीतरी कमरे में
और फिर,
देर बहुत देर बाद निकलना कमरे
से मेरे जाने के बाद,
सच-
सुमी - मै लिखना चाहता हूँ
एक लम्बी - बहुत लम्बी कविता
जिसमे सिर्फ
ज़िक्र होगा
हमारा तुम्हारा
इस धरती का आकाश का
और मुहब्बत का
जो पसरा है
अपने दरम्यान
चंपा - चमेली की खुशबू सा
सूरज की सुरमई किरनो सा
हवा पानी सा
ज़िंदगी सा
सच - सब कुछ लिखना चाहूँगा
अपनी इस लम्बी कविता में

मुकेश इलाहाबादी ---------



Tuesday 27 October 2015

क्यूँ दिल तड़पता है उसी का हो जाने को

क्यूँ दिल तड़पता है उसी का हो जाने को ?
होता है नामुमकिन जिससे मिल पाने को

जिसको परवाह नहीं आपके जज़्बातों की
जी क्यूँ  करे है उसीको दर्दोगम सुनाने को

जानता हूँ चाँद कभी ज़मी पे नहीं आयेगा
फिर भी दिल तड़पे है उसी का हो जाने को


मुकेश इलाहाबादी ---------------------------

Monday 26 October 2015

अक्सर दिल तड़पता है उसी का हो जाने को

क्यूँ,
अक्सर दिल तड़पता है उसी का हो जाने को
होता है नामुमकिन जिससे मिल पाने को
मुकेश इलाहाबादी ---------------------------

Sunday 25 October 2015

दिल के शीश महल में

दिल के
शीश महल में
तुम्हारी यादें
हज़ारों हज़ार रूप में
प्रतिबिंबित हो
लौट आती हैं, मुझ तक
और मै
तुम तक पहुचने की
नाकाम कोशिश में
ख़ुद को लहूलुहान
कर लेता हूँ
इन यादों के आइनों से

मुकेश इलाहाबादी --------

Wednesday 21 October 2015

ग़र हम तुम मिल पाएं तो

ग़र  हम तुम मिल पाएं तो
ख्वाब हकीकत हो जाएं तो

अपने सपनो की दुनिया हो
चंदा, गुलमोहर बरसायें तो

कल - कल बहती दरिया हो
हम तुम छप-छप नहाएं तो

सोचो कितना आनंद आएगा
तुम रूठो और हम मनाएं तो

तुम मेरे कंधे पे सिर रखे हो
तुमको  प्रेम गीत सुनाएं तो

तेरे माथे की उलझी लट को
हौले - हौले हम सुलझाएं तो

मुकेश इलाहाबादी ------------

Friday 16 October 2015

तुझसे नाता तोड़ लिया

तुझसे  नाता  तोड़  लिया
ग़म से रिश्ता जोड़ लिया
तेरे  घर  की  जानिब  से
आना -जाना  छोड़  दिया
ख़ाबों की दुनिया से मैंने
मुँह अपना है मोड़ लिया
मुकेश इलाहाबादी -----

कातिलाना अंदाज़ में मुस्कुराया न कर

कातिलाना अंदाज़ में मुस्कुराया न कर
सज संवर कर कहीं आया जाया न कर

राह चलते मुसाफिर,कारवां रुक जाते हैं
यूँ चिलमन से तू बेनकाब झाँका न कर

तुझे क्या  मालूम मुकेश इक जादूगर है
ईश्क हो जाएगा, उससे रोज़ मिला न कर

मुकेश इलाहाबादी ---------------------------

जैसे, चुपके चुपके उतर आती है साँझ

जैसे,
चुपके चुपके उतर आती है
साँझ
और लपेट लेती हैं
ज़मीन को आसमान को
अपने सांवले आँचल में
और बहती रहती है
रात भर
एक भरी पूरी नदी सा
बस ऐसे ही
तुम्हारी यादें
तुम्हारी बातें
तुम्हारे मूंगियां होंठ
और ,,,,,
खनखनाती हंसी
घेर लेती है मुझे
और मै ,,,,
नींद में भी मुस्कुराता हुआ
सोता रहता हूँ
देर तक - बहुत देर तक

मुकेश इलाहाबादी ------------


Monday 12 October 2015

ठण्ड से कंपकंपाते बदन को

जैसे,
ठण्ड से कंपकंपाते बदन को
दे जाए
गुनगुनी सेंक

जेठ के तपती
दुपहरी में
मिल जाए
अमराई की
ठंडी छाँह

या कि
बरसों के सूखे के बाद की
हल्की हल्की फुहार

बस - तुम ऐसी ही हो

मुकेश इलाहाबादी ----

Thursday 8 October 2015

रातरानी गेंदा, गुलाब लिए फिरते हो

रातरानी गेंदा, गुलाब लिए फिरते  हो 
संग -२ अपने गुलशन लिए फिरते हो 
उजली  चांदनी चादर सी बिछ जाती है 
साथ अपने सूरज चाँद लिए फिरते हो 
तुम्हारे आने से आती है रौनक, मुकेश 
संग -२ अपने महफ़िल लिए फिरते हो 
मुकेश इलाहाबादी ----------------------

अपना वीराना घर गुलज़ार कर लेता हूँ

अपना वीराना घर गुलज़ार कर लेता हूँ
तू नहीं तेरी तस्वीर से बात कर लेता हूँ

तू चाँद,चांदनी बन के बरसेगी, इक रोज़
यही सोच कर मै,इत्मीनान कर लेता हूँ

दरीचे दरवाज़े बंद कर परदे खींच देता हूँ
इस तरह दिन को ही मै रात कर लेता हूँ

तेरे गालों के गुलाल और यादों के चराग़
अपनी होली दिवाली,त्यौहार कर लेता हूँ

मुकेश दिन मुफलिसी के हों या ग़ुरबत के
तेरी बातों से दिन अपना ख़ास कर लेता हूँ

मुकेश इलाहाबादी ------------------------

Monday 5 October 2015

अंधेरी यादों में चमके हैं


अंधेरी यादों में चमके हैं 
तेरी यादें चाँद सितारे हैं 

तेरी बातों की खुशबू से
जीवन बगिया महके है 

लम्बी  उदास  रातों  में 
तेरे  बारे  में ही सोचे हैं 

तू मिसाल ऐ ख़ूबसूरती 
ये फ़रिश्ते भी कहते हैं 

जहां भी जाता हूँ, हम 
तेरे ही किस्से सुनते हैं 

मुकेश इलाहाबादी ----