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Sunday 25 October 2015

दिल के शीश महल में

दिल के
शीश महल में
तुम्हारी यादें
हज़ारों हज़ार रूप में
प्रतिबिंबित हो
लौट आती हैं, मुझ तक
और मै
तुम तक पहुचने की
नाकाम कोशिश में
ख़ुद को लहूलुहान
कर लेता हूँ
इन यादों के आइनों से

मुकेश इलाहाबादी --------

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