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Tuesday 25 October 2016

तुमको वक़्त नहीं मिलता

तुमको वक़्त नहीं मिलता
हमें कोई और नहीं मिलता
चला तो जाऊं मैं कहीं और
तुझ बिन चैन नहीं मिलता
मुकेश इलाहाबादी ----------


कहीं रक्खूँ, कहीं पाँव पड़ता है

कहीं रक्खूँ, कहीं पाँव पड़ता है 
तुझे देखूँ तो होश कहाँ रहता है

देखना, इक दिन ऐसा आएगा
तू मेरी होगी, दिल ये कहता है

अमूमन मैं होश में ही होता हूँ
तुझसे मिलूं तो ही बहकता है

इलाहाबाद आये हो मिल लो
मुकेश भी यहीं कहीं रहता है

मुकेश इलाहाबादी ------------



मुकेश इलाहाबादी ---------------

तुमसे मिल के गेंदा गुलाब हो जाएगी

तुमसे मिल के गेंदा गुलाब हो  जाएगी
ज़िंदगी अपनी,  गुलज़ार हो जाएगी
है, ग़मज़दा  दिल मेरा  इक ज़माने से
तू आये तो खुशिया हज़ार हो जाएगी
मुकेश इलाहाबादी -------------------

तुम्हारे, ख्वाब सुनाते हैं, लोरियाँ

तुम्हारे,
ख्वाब सुनाते हैं,
लोरियाँ
यादें देती हैं
थपकियाँ
तब मैं सो पाता हूँ
मीठी गहरी नींद
दिन भर की थकन के बाद
मुकेश इलाहाबादी --

Monday 24 October 2016

तेरा आँचल फलक,मैं सितारा हो जाऊँ

तेरा आँचल फलक,मैं सितारा हो जाऊँ
तू मेरी हो जा और मैं तुम्हारा हो जाऊँ

तू मुझको मेले में मिल, और खो जायें
तुझको दर दर ढूँढू , मैं बंजारा हो जाऊँ

उन्मत्त लहरें मेरे सीने पे रह रह गिरें
तू नदी बन जाए,  मैं किनारा हो जाऊँ

मुकेश शराफत मुझको रास आयी नहीं
सोचता हूँ तेरे ईश्क़ में आवारा हो जाऊँ

मुकेश इलाहाबादी ----------------------

Sunday 23 October 2016

दिन में तेरी यादों का उजाला रहता है

दिन में तेरी यादों का उजाला रहता है
शब् भर तेरे ख्वाबों के चांदनी होती है

तू ही तो मेरा चाँद और सूरज तो नहीं ?

मुकेश इलाहाबादी ----------------------

Thursday 20 October 2016

चंदन सा महकता है कोई

चंदन सा महकता है  कोई
साँसों में बस गया है कोई
जब जब तुमसे मिलता हूँ
गुलाब सा खिलता है कोई
कली क्यूँ मुस्कुराई शायद 
भौंरा गुनगुना गया है कोई
तेरी पायल की रुनझुन है
या संतूर बजा गया है कोई

मुकेश इलाहाबादी -------

Wednesday 19 October 2016

इक अर्सा के बाद भी

इक अर्सा के बाद भी
तनहा हूँ मैं आज भी

दिन तो उदास गुज़रा
होगी  उदास रात भी

ग़म सारे  बता  दिए
अब देख तू, घाव  भी

महफूज़ हैं,  मेरे पास
वो ख़त वो गुलाब भी

हो गए ख़फ़ा, मुझसे
चाँद भी, महताब भी

मुकेश इलाहाबादी ---
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Sunday 16 October 2016

यूँ ही नहीं, कारवाँ तुमको मुड़ मुड़ के देखता है

यूँ ही नहीं, कारवाँ तुमको मुड़ मुड़ के देखता है 
कुछ तो ज़माने से अलहदा देखा होगा तुममे ,,
मुकेश इलाहाबादी ----------------------

यूँ कुछ ख्वाब, सुनहरे बुन लेता हूँ

यूँ कुछ ख्वाब, सुनहरे बुन लेता हूँ
तस्वीर तेरी सिरहाने रख लेता हूँ
मुकेश इलाहाबादी ---------------

नागों से हमको भी कटवाया गया

नागों से हमको भी कटवाया गया
अपनी तरह ज़हरीला बनाया गया

हम भी नशेड़ी हो जाएं, इसी लिए    
मज़हब की अफीम चटवाया गया

पहले तो गरीब की आँखें निकाली
फिर हाथों में आईना थमाया गया

जिन हाथों में खिलौने होने चाहिए,  
उन मासूमों को खंज़र थमाया गया

जहाँ  कल तक धान ऊगा करते थे
उन्ही खेतों में बाजार बनाया गया

मुकेश इलाहाबादी --------------
 

Saturday 15 October 2016

जब -जब हँसते हो मुस्काते हो

जब -जब हँसते हो मुस्काते हो
ताज़ा खिले गुलाब से लगते हो

तेरा रूप तेरी बातें सबसे न्यारी
क्या परियों के देश से आये हो

तेरी मुस्कान में इत्ता जादू क्यूँ
तुम  क्यूँ  इतने प्यारे लगते हो

तुझसे, रिश्ता नहीं, दोस्ती नहीं ,
फिर क्यूँ ,तुम अपने लगते हो ?

क्या तुम भी आवारा मुकेश की
ग़ज़लें तनहा रातों  में सुनते हो

मुकेश इलाहाबादी ------------




Friday 14 October 2016

पलकों को मूँदते ही

पलकों को
मूँदते ही
सुनाई देती है
तुम्हारे नाम की
गूँज - अनाहत नाद सी
जिसे सुनते - सुनते
डूब जाता हूँ
किसी, अजानी
नीली रूहानी झील में
जिसमे उतर कर
ताज़ा दम हो जाता हूँ
एक बार फिर
दिन भर के थकाऊ और
धूल भरे सफर के लिए

सुमी - तुम्ही से --

मुकेश इलाहाबादी -----------

Thursday 13 October 2016

चरागों को बुझा दिया जाए

चरागों को
बुझा दिया जाए
सूरज पे,
पर्दा लगा दिया जाये
चाँद को
बादलों से ढक दिया जाए
कि,
तेरे चेहरे का नूर ही
काफ़ी है रोशनी के लिए
सुमी - के लिए
मुकेश इलाहाबादी -----

Tuesday 11 October 2016

पलकों के नीचे झाँइयाँ हैं


पलकों के नीचे झाँइयाँ हैं
उदासी की परछाँइयाँ  हैं

देख बुलन्दी के इर्द - गिर्द
पतन की गहरी खाइयाँ है

दोस्त राह -ऐ- मुहब्बत में
हर  कदम पे रुसवाइयाँ हैं

मेरे हर ज़ख्म को देख तू ,
सिर्फ तेरी ही निशानियाँ हैं

तू सब को अपना समझे है
तेरी यही तो नादानियाँ है

मुकेश इलाहाबादी -------

Friday 7 October 2016

तू ग़ज़ल मेरी गुनगुनाऊँ तुझको

तू ग़ज़ल मेरी गुनगुनाऊँ तुझको
आ इक बार गले लगाऊँ, तुझको
ले आया हूँ, चाँद -सितारे तोड़ के
आ अपने हाथों से सजाऊँ तुझको
मुकेश, अपना ग़म, अपनी खुशी
ग़र इज़ाज़त दे तो सुनाऊँ तुझको

मुकेश इलाहाबादी ---------------

Tuesday 4 October 2016

अब हाल ऐ दिल क्या सुनाऊँ तुम्हे

अब हाल ऐ दिल क्या सुनाऊँ तुम्हे
कट रहे हैं दिन तेरा नाम ले -ले के
मुकेश इलाहाबादी ----------------

वक़्त के घुमते हुए चाक पे


वक़्त के
घुमते हुए चाक पे
रख दिया
तुम्हारी यादों की
सोंधी मिट्टी गूंथ के
जिससे गढ़ा,
एक खूबसूरत चराग़
और अब रौशन हैं
मेरे, दिन और रात

मुकेश इलाहाबादी -------