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Saturday 15 October 2016

जब -जब हँसते हो मुस्काते हो

जब -जब हँसते हो मुस्काते हो
ताज़ा खिले गुलाब से लगते हो

तेरा रूप तेरी बातें सबसे न्यारी
क्या परियों के देश से आये हो

तेरी मुस्कान में इत्ता जादू क्यूँ
तुम  क्यूँ  इतने प्यारे लगते हो

तुझसे, रिश्ता नहीं, दोस्ती नहीं ,
फिर क्यूँ ,तुम अपने लगते हो ?

क्या तुम भी आवारा मुकेश की
ग़ज़लें तनहा रातों  में सुनते हो

मुकेश इलाहाबादी ------------




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