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Tuesday 11 October 2016

पलकों के नीचे झाँइयाँ हैं


पलकों के नीचे झाँइयाँ हैं
उदासी की परछाँइयाँ  हैं

देख बुलन्दी के इर्द - गिर्द
पतन की गहरी खाइयाँ है

दोस्त राह -ऐ- मुहब्बत में
हर  कदम पे रुसवाइयाँ हैं

मेरे हर ज़ख्म को देख तू ,
सिर्फ तेरी ही निशानियाँ हैं

तू सब को अपना समझे है
तेरी यही तो नादानियाँ है

मुकेश इलाहाबादी -------

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