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Tuesday 25 October 2016

कहीं रक्खूँ, कहीं पाँव पड़ता है

कहीं रक्खूँ, कहीं पाँव पड़ता है 
तुझे देखूँ तो होश कहाँ रहता है

देखना, इक दिन ऐसा आएगा
तू मेरी होगी, दिल ये कहता है

अमूमन मैं होश में ही होता हूँ
तुझसे मिलूं तो ही बहकता है

इलाहाबाद आये हो मिल लो
मुकेश भी यहीं कहीं रहता है

मुकेश इलाहाबादी ------------



मुकेश इलाहाबादी ---------------

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