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Wednesday, 28 October 2015

एक लम्बी कविता लिखना चाहता हूँ

सुमी,
मै एक लम्बी कविता लिखना चाहता हूँ
इतनी लम्बी, जिसमे समा जाए
तुम्हारे बदन की संदली महक
गुलमोहर सी हंसी
और, ये सलोना सा चेहरा
लिखना चाहूँगा इस लम्बी कविता में
तुम्हारी मासूम बातें
तुम्हारा ज़िद्दीपन
बात बात में रूठना,
फिर खुद ब खुद मान जाना
संजना संवरना
देखना आईने में खुद को
फिर खुद से खुद को देख शरमा जाना
मै सिर्फ यही नहीं लिखूंगा
मै लिखना चाहूँगा
तुम्हारा बिन बात उदास हो जाना
अपने आप खुश हो जाना
और गुनगुनाना
- बड़े अच्छे लगते हैं
  ये नदिया - ये रैना और तुम
और
'तुम' शब्द आते ही, मुझे
देख खिलखिलाना
या फिर शरमा के भाग जाना
घर के सबसे भीतरी कमरे में
और फिर,
देर बहुत देर बाद निकलना कमरे
से मेरे जाने के बाद,
सच-
सुमी - मै लिखना चाहता हूँ
एक लम्बी - बहुत लम्बी कविता
जिसमे सिर्फ
ज़िक्र होगा
हमारा तुम्हारा
इस धरती का आकाश का
और मुहब्बत का
जो पसरा है
अपने दरम्यान
चंपा - चमेली की खुशबू सा
सूरज की सुरमई किरनो सा
हवा पानी सा
ज़िंदगी सा
सच - सब कुछ लिखना चाहूँगा
अपनी इस लम्बी कविता में

मुकेश इलाहाबादी ---------



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