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Friday 16 October 2015

जैसे, चुपके चुपके उतर आती है साँझ

जैसे,
चुपके चुपके उतर आती है
साँझ
और लपेट लेती हैं
ज़मीन को आसमान को
अपने सांवले आँचल में
और बहती रहती है
रात भर
एक भरी पूरी नदी सा
बस ऐसे ही
तुम्हारी यादें
तुम्हारी बातें
तुम्हारे मूंगियां होंठ
और ,,,,,
खनखनाती हंसी
घेर लेती है मुझे
और मै ,,,,
नींद में भी मुस्कुराता हुआ
सोता रहता हूँ
देर तक - बहुत देर तक

मुकेश इलाहाबादी ------------


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