पहले जी भर के लूटते हैं, फिर उदासी का शबब पूछते हैं न इज्ज़त, न दौलत महफूज़ गली गली लुटेरे घूमते हैं मैखाना बन गया है शहर हर तरफ रिंद झूमते हैं खिलने के पहले ही भौरे कलियों का मुह चूमते हैं
दूर छितिज़ में देखता हूँ रोज़ कई सितारे टूटते हैं मुकेश इलाहाबादी --------------
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