एक
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सुबह
होते ही सज जाती हैं
झूठ की चमकीली दुकाने
और सच ठिठका खड़ा है
फुटपाथ पे अपनी ठेलिया लिए दिए
दो
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सुबह
होते ही जेब में
उम्मीद का सिक्का ले कर
चल पड़ता हूँ दुनिया के हाट में
दिन भर चिमकीली दुकानों को
देखने और हाट में घूमने के बाद
सांझ लौट आता हूँ
झोले में ढेर सारी निराशाओं को लिए दिए
मुकेश इलाहाबादी -----------------------
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सुबह
होते ही सज जाती हैं
झूठ की चमकीली दुकाने
और सच ठिठका खड़ा है
फुटपाथ पे अपनी ठेलिया लिए दिए
दो
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सुबह
होते ही जेब में
उम्मीद का सिक्का ले कर
चल पड़ता हूँ दुनिया के हाट में
दिन भर चिमकीली दुकानों को
देखने और हाट में घूमने के बाद
सांझ लौट आता हूँ
झोले में ढेर सारी निराशाओं को लिए दिए
मुकेश इलाहाबादी -----------------------
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