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Friday 30 November 2012

धुंध है शाम-ओ-सहर की

धुंध है शाम-ओ-सहर की
बेचैनिया आठों पहर की

कि दिल अब मानता नहीं
की हमने मुद्दतों सबर की 

वो अभी तक आये नहीं,की
हमने कासिद से खबर की

ले जायेगी मुझे किस ठांव
अब तो ये मर्जी है लहर की

है हर कोई हस्ती में उदास,
सिर्फ यही है खबर शहर की

मुकेश इलाहाबादी -----------

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