बात दोनों तरफ हो तो मज़ा देता है
वर्ना इक तरफ़ा ईश्क़ सजा देता है
रात वस्ल की हो या फिर हिज़्र की
ईश्क़ तो आँखों को रतजगा देता है
ईश्क़जादों को जलने का नहो खौफ
ईश्क़ इन्सा को परवाना बना देता है
गोरा हो काला हो कि छोटा या बड़ा
सच्चा ईश्क़ तो हरभेद मिटा देता है
ख़ुदा से हो या फिर उसके बन्दे से
ईश्क़ वो शै जो दीवाना बना देता है
मुकेश इलाहाबादी ----------------
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (१८-०७-२०२०) को 'साधारण जीवन अपनाना' (चर्चा अंक-३७६६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
सुन्दर
ReplyDeleteVery nice post....
ReplyDeleteWelcome to my blog...
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बढ़िया रचना
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