चेहरे पे खामोशी का परदा लगाए रखता है
वो दिल का अपने हर राज़ छुपाये रखता है
इक तो चंचल चितवन दूजे मासूम आँखे
ऊपर से ज़ुल्फ़ माथे पे छितराये रखता है
खुश हो तो सारे जहान की बात करता है
रूठ जाए तो महीनो मुँह फुलाए रखता है
मुँह फट इतनी कि चले जाने को कह दे
अक्सरहां पलक पांवड़े बिछाये रखता है
डहलिया चंपा चमेली गुलाब रात रानी
बातों से महफ़िल को महकाये रखता है
मुकेश इलाहाबादी ----------------------
उमादा ग़ज़ल
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