मोम के घर में सूरज उगाये बैठे हैं
मोम के घर में सूरज उगाये बैठे हैं
अपना तन और मन जलाए बैठे हैं
हम भी अजब तबियत के इंसां हैं,
बूते संगमरमर से दिल लगाये बैठे हैं
लिखी थी जो कभी किताबे मुहब्बत
आज वही हर्फ़ दर हर्फ़ मिटाए बैठे हैं
न मैखाना, न किसी दरिया में मिटी
ये कैसी आदिम प्यास जगाये बैठे है
मुकेश इलाहाबादी -------------------
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