एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Friday, 30 November 2012
मंज़र हम ये हर सिम्त देखते हैं
मंज़र हम ये हर सिम्त देखते हैं
लोगों के चेहरे पे शिकन देखते हैं
कोशिश कर के देखूं भी तो दूर,,,
बहुत दूर उम्मीदे किरन देखते हैं
मुकेश इलाहाबादी -----------------
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