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Thursday 22 November 2012

बूँद बूँद अपना आँचल भरता है बादल


बूँद बूँद  अपना आँचल भरता है बादल
फिर दिल खोल के बरस जाता है बादल

मेरी आखों के फलक में भी है एक बादल
कितने समंदर लिए फिरता है ये  बादल 

ज़मी की तरह जब भी कोई बिछ जाए है
रिमझिम रिमझिम बरस जाता है बादल

 


मुकेश ईलाहाबादी ------------------------

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