एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Friday 23 November 2012
तुम कितना ही दबे पाँव मेरे कूचे से गुज़र जाओ,
तुम कितना ही दबे पाँव मेरे कूचे से गुज़र जाओ,
तेरी आहट हम साँसों की रफ़्तार से समझ जाते हैं
मुकेश इलाहाबादी --------------------------------
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