अजब,
तरह से इक़रार करती हो
आँखों से हाँ
होंठो से इंकार करती हो
कभी शोखी,
कभी अदा
कभी सादगी
हज़ारों तरीकों से बेकरार करती हो
कभी हंस के
कभी मुस्का के
कभी चुप रह के
महफ़िल को गुलज़ार करती हो
मुकेश इलाहाबादी ----------------
तरह से इक़रार करती हो
आँखों से हाँ
होंठो से इंकार करती हो
कभी शोखी,
कभी अदा
कभी सादगी
हज़ारों तरीकों से बेकरार करती हो
कभी हंस के
कभी मुस्का के
कभी चुप रह के
महफ़िल को गुलज़ार करती हो
मुकेश इलाहाबादी ----------------
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