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Monday 31 December 2018

काँच की तरह कुछ चटका हुआ तो है

काँच की तरह कुछ चटका हुआ तो है
दिल के अंदर कुछ तो टूटा हुआ तो है

गिनता हूँ तो सारे असबाब हैं फिर भी
तुम्हारे पास मेरा कुछ छूटा हुआ तो है

समेट लिया है हमने, अपने आप को
वज़ूद में अपने कुछ बिखरा हुआ तो है

चाँद भी वही सूरज भी वही तारे वही हैं
बाद दिसम्बर के कुछ बदला हुआ तो है 

हँसता है मुस्कुराता है, बतियाता भी है
लगता है मुकेश खुद से रूठा हुआ तो है

मुकेश इलाहाबादी ----------------

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