सर को धड़ से अलग कर दिया है
खुद को छिन्नमस्ता कर लिया है
नीलकंठ बनूँ ऐसा इरादा तो न था
पर उम्र भर ज़हर ही ज़हर पिया है
ज़ख्म मेरे कोई देख न ले,लिहाज़ा
सफाई से हर घाव तुरपाई किया है
इश्क़ तेज़ाब की नदी गल जाऊँगा
फिर भी प्यार किया प्यार किया है
दुनिया के मेले में घूम घूम थका हूँ
तन्हाई में बैठा हूँ यही मेरा ठिया है
मुकेश इलाहाबादी ------------------
खुद को छिन्नमस्ता कर लिया है
नीलकंठ बनूँ ऐसा इरादा तो न था
पर उम्र भर ज़हर ही ज़हर पिया है
ज़ख्म मेरे कोई देख न ले,लिहाज़ा
सफाई से हर घाव तुरपाई किया है
इश्क़ तेज़ाब की नदी गल जाऊँगा
फिर भी प्यार किया प्यार किया है
दुनिया के मेले में घूम घूम थका हूँ
तन्हाई में बैठा हूँ यही मेरा ठिया है
मुकेश इलाहाबादी ------------------
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