एक देश का राजा राजा थोड़ा थोड़ा स्वार्थी था थोड़ा थोड़ा काम समझदार था। उस राजा का प्रधानमंत्री और बाकी मंत्री भी राजा की तरह थोड़े थोड़े स्वार्थी और थोड़े थोड़े कम समझदार थे। लिहाज़ा राज्य की जनता भी थोड़ी दुःखी थी थोड़ी परेशान थी। राज्य का विकास तो हो रहा था पर उस तरह से न हो पा रहा था जैसा होना चाहिए। जिस तरह की ख़ुशीहाली और शांति होनी चाहिए थी वो नहीं हो पा रही थी। लिहाज़ा सब कुछ चल तो रहा था पर बहुत ठीक ठीक नहीं चल पा रहा था। लिहाज़ा राज्य की जनता कुछ परवर्तन चाहती थी। और ऐसे ही वक़्त में राज्य में एक धूर्त आ गया उसके साथ उसके कुछ साथी भी थे वे भी उसी की तरह
धूर्त थे। उन लोगों ने जनता से कहा तुम लोग जिनको अपना राजा और मंत्री मानते हो वो कितने बड़े मूर्ख और स्वार्थी हैं। आप हमें अपना राजा बनाओ मै तुम लोगों को विकास के रथ पे बैठा के जन्नत ले जाऊँगा। तुम्हे हर वो चीज़ दूंगा जो तुम्हारी ख्वाहिश है तुम्हे बड़े बड़े महल दूंगा , तुम्हे सोने के हवाई जहाज़ दूंगा तुम्हारे हर एक खजाने में लाखों लाख रुपये दूंगा। तुम्हे ये दूंगा तुम्हे वो दूंगा। आदि आदि।
बिचारी भोली भाली जनता उन धूर्तों के जाल में आ गयी और उस धूर्त को अपना राजा और धूर्तों के साथियों को मंत्री पद पे बैठा दिया।
धूर्त थे। उन लोगों ने जनता से कहा तुम लोग जिनको अपना राजा और मंत्री मानते हो वो कितने बड़े मूर्ख और स्वार्थी हैं। आप हमें अपना राजा बनाओ मै तुम लोगों को विकास के रथ पे बैठा के जन्नत ले जाऊँगा। तुम्हे हर वो चीज़ दूंगा जो तुम्हारी ख्वाहिश है तुम्हे बड़े बड़े महल दूंगा , तुम्हे सोने के हवाई जहाज़ दूंगा तुम्हारे हर एक खजाने में लाखों लाख रुपये दूंगा। तुम्हे ये दूंगा तुम्हे वो दूंगा। आदि आदि।
बिचारी भोली भाली जनता उन धूर्तों के जाल में आ गयी और उस धूर्त को अपना राजा और धूर्तों के साथियों को मंत्री पद पे बैठा दिया।
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