मैंने,
तुम्हारे लिए इत्ती सारी
कविता, कहानी और नज़्मे लिखीं,
क्या तुम मेरे लिए एक शब्द भी नहीं लिख सकती ??
पहले वो चुप रही
मुस्कुराई,
फिर उँगलियों के पोरों से हवा में कुछ लिखा
और हथेली की अंजुरी बना
होठो के पास ले जा
फूँक कर कहा 'लो पढ़ लेना,
मेरा महकता हुआ ख़त ,,"
और - मुँह चिढ़ा कर भाग गयी,
वो छुई - मुई
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
तुम्हारे लिए इत्ती सारी
कविता, कहानी और नज़्मे लिखीं,
क्या तुम मेरे लिए एक शब्द भी नहीं लिख सकती ??
पहले वो चुप रही
मुस्कुराई,
फिर उँगलियों के पोरों से हवा में कुछ लिखा
और हथेली की अंजुरी बना
होठो के पास ले जा
फूँक कर कहा 'लो पढ़ लेना,
मेरा महकता हुआ ख़त ,,"
और - मुँह चिढ़ा कर भाग गयी,
वो छुई - मुई
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
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