Pages

Monday 25 May 2015

सांझ का अंधेरा घना है

सांझ का अंधेरा घना है
मन मेरा भी अनमना है

मुस्कान रख ली जेब मे
खुल कर हंसना मना है

है खुशी देर से लापता
दुख सीना ताने तना है

रिश्तो मे सर्दपन  सही
लहजा तो  गुनगुना  है

मुकेश अच्छा लिखता है
यह  तो  मैने भी सुना है

मुकेश इलाहाबादी ------

No comments:

Post a Comment