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Sunday 17 May 2015

मै लिखना चाहता था - कविता

मै
लिखना चाहता था -  कविता
पर, मेरे पास
कागज़ न था
स्याही न थी

तुम,  मुस्कुराईं
तुमने फैला दिया
अपना आँचल
बिखेर दी स्याह ज़ुल्फ़ें 

मै, युद्ध रत था
रथ पे सवार था
विश्व विजेता बनने की चाह थी
तुम - पहिये की धूरी बन गयी
घूमती रही -
अहर्निश - चुपचाप

मै, बनना चाहता था
धर्मराज,
हारा, तुम्हे जुएं मे
पाया वनवास
पर तुमने भी तो गहा
वनवास मेरे साथ
गेसुओं को खोले - खोले

मेरे पुरुषोत्तम,
बनने की राह में भी
तुम  रहीं साथ - साथ
फिरीं वन - वन
और देती रहीं अग्नि परीक्षा - अकेले ही
चुपचाप

पर अब - मै
करना चाहता हूँ
पश्चाताप
हो जाना चाहता हूँ
तुम्हारा - सिर्फ तुम्हारा
वही,
आदम -हव्वा सा
शिव - पार्वती सा
फूल और खुशबू सा
एक प्रेम गीत सा
और - उसके भाव सा

मुकेश इलाहाबादी -----------

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