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Saturday 16 May 2015

आंसू

जब,
शब्द,
भावाभिव्यक्ति में
असमर्थ हो जाते हैं
तब,
जिस्म का पानी
जिस्म के नमक के साथ
घोल लेता है
तमाम
सुख- दुःख
हर्ष - विषाद
आशा - निराशा
प्यार - घृणा
या फिर
बरसों का संजोया दर्द
और, बह निकलता है
आखों से, जिसे
हम आंसू कहते हैं

लिहाज़ा,
इस एक बूँद को
महज़ नमकीन पानी की
एक बूँद मत समझो
मुकेश बाबू
अगर, अभी नहीं समझे
तो, उस दिन समझोगे
जिस दिन सूख जाएंगे
तुम्हारी,
आँख के आँसू

मुकेश इलाहाबादी ----

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