Pages

Monday 30 January 2012

पहाड़ और पीठ

पहाड़ और पीठ

एक

पहाड़

सिर्फ पीठ होता है
मुह  होता तो बोलता
पहाड़ के पैर भी
नही होते
हाथ भी
वरना वह चलता
कुछ करता
या, उठता बैठता भी
पहाड़, अपनी पीठ पर
लाद लेता है
तमाम जंगल
नदी नाले,
हरी भरी झील भी
सड़क और बस्तियां  भी
और कुछ नही बोलता
क्यों कि पहाड़
सिर्फ पीठ है
और पीठ
कुछ नही बोलती

दो

पीठ, पहाड़ नही होती

पर लाद लेती है
पहाड़
पीठ के भी मुह
नही होता
पहाड़ की तरह
होती है एक
सतह
जो थपथपायी जाती है
पहाड़ लाद लेने
के एवज में, यही
पीठ गोरी व चिकनी है
तो फिसलती हैं
नजरें व हांथ भी
और, लद आते हैं
पहाड़
और उग आते हैं
आखों  के जंगल
खुंखार व भयावह
यही पीठ
सख्त और मजबूत है तो
नही दिखा सकती पीठ
तमाम नस्तर व खंजर
लगने के बाद भी 
क्यांकि पीठ पर
पहाड़ होते हैं, और
पहाड़ के मुह नही होता
और पीठ के भी

मुकेश इलाहाबादी

No comments:

Post a Comment