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Saturday, 17 March 2012

मेरे ख़्वाबों में बस्ती क्यूँ हो ?

बैठे ठाले की तरंग ----------

मेरे ख़्वाबों में बस्ती क्यूँ हो ?
मेरी यादों में रहती क्यूँ हो ?

ज़ब तुम मुझसे हो गयी जुदा
हर मोड़  पे  मिलती  क्यूँ हो ?

मेरे  गीतों  में जब नहीं रवानी
शामो सहर गुनगुनाती क्यूँ हो ?

ज़ख्म भरने की खातिर आया
रह रह के नमक छिड़कती क्यूँ हो ?

ज़ब प्यास नहीं बुझानी थी
झरने सा फिर बहती क्यूँ हो ?

मुकेश इलाहाबादी ---------------

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