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Wednesday, 4 April 2012

चाँद सूरज मै उगाऊं अपने आँगन मे

बैठे ठाले की तरंग ----------------------

चाँद सूरज मै उगाऊं अपने आँगन मे
धुप  छांह  मै  खेलूँ  अपने  आँगन मे

जान कर छुप जाओ जब परदे की ओट
खेल खेल मे तुझको ढूँढू,अपने आँगन मे

तुलसी चौरे को दिया बाती औ देती अर्ध्य 
सुबहो शाम तुझको देखूं ,अपने आँगन मे

मुझे शाम ढले जब देर हो घर लौट आने मे
तुझे,बनावटी गुस्से मे देखूं अपने आँगन मे 

छुट्टियों का दिन हो, और हो सुनहरी शाम
तेरी स्याह जुल्फों से  खेलूँ अपने आँगन मे

मुकेश इलाहाबादी ---------------------------

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