Pages

Wednesday 9 May 2012

मुक्त केश संदल त्वचा

बैठे ठाले की तरंग ----------------------------

मुक्त केश संदल त्वचा, नेत्र कँवल समान
गोरी गजगामिनी चलत, बरसे फूल गुलाब

प्रिय के मुख चुम्बन से गाल भयो गुलाल
सखी कैसे होली खेलूँ? आवत मुझको लाज

मुकेश इलाहाबादी ------------------------------

No comments:

Post a Comment