एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Thursday, 17 May 2012
आपकी खामोश आखों में जो ठहरा हुआ समंदर है
गुस्ताखी माफ़ ----------------
आपकी खामोश आखों में जो ठहरा हुआ समंदर है
उसमे एहसासों के न जाने कितने कितने मंज़र हैं
डूब जाने दो इक बार इन नीली गहरी खामोशी में
ढूंढ ही लूँगा मुहब्बत के कुंछ अनमोल मोतियों को
मुकेश इलाहाबादी -----------------------
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