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Friday 18 May 2012

दिखी थी खिली धुप की तरह

बैठे ठाले की तरंग ---------

दिखी थी
खिली धुप की तरह
हंसी थी
चटक चांदनी की तरह
चली थी
उन्मुक्त नदी  की तरह
पर, देखा है उसे आज
खड़े हुए चुपचाप
होठो पे अपनी उंगलियाँ
दबाये हुए
न जाने किन ख्यालों में गुम
सोचता हूँ
ये उनकी अदा है
या खोए हैं कीन्ही ख्यालों में
मुकेश इलाहाबादी ----------------------

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