वह ज़मी की तह तक गया है तभी बुलंदियों को छू गया है देखना समंदर के पार जाएगा तूफां और सफीनो से न डरा है आफताब सा उगेगा एक दिन खुद को इतना जला लिया है बीज बन के माटी में मिला था वही आज फूल बन के खिला है पत्थर बना डाला है खुद को अब वो सदियों तक का सिला है
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