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Wednesday, 27 June 2012

सूरत अपनी देख कर मन उदास है


बैठे ठाले की तरंग -----------

सूरत  अपनी  देख कर मन उदास है
चेहरा बदल गया या आईना खराब है                                          

हर सिम्त अभी तक फ़ैली है तीरगी
ये घिर आये बादल या लम्बी रात है

पूछता हूँ हाल  तो  कुछ  बोलते  नहीं
हमसे खफा हैं, या कोइ और बात है ?

चला था मंदिर को पहूचता हूँ  मैक़दे
रिंद बन गया हूँ या मौसम की बात है ?

मुकेश इलाहाबादी -------------------

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