कितनी बेबस होती हूं मैं
देख कर अपने बूढ़े बाप को
किश्त दर किश्त भरते हुये
उस कर्ज को
जो लिया था अपनी ग्रेचुटी
और पी एफ खर्च करने के बाद भी
खरीदना था जिससे
चुटकी भर सिंदूर
मेरी मांग की खातिर
उफ भी नही कर सकती
चुटकी भर सिंदूर के लिए
अपना शरीर अपना मन व आत्मा
भी सौंप देने के बाद
जिस सिंदूर को फेलना चाहिये था
लाल गुलाब सितारों की तरह
चमकता है मेरे बालों में
लाल अंगार की मानिंद
क्या कभी तुम सोच सकोगे
कि तुम्हारा चुटकी भर सिंदूर
कितना कीमती है
मुकेश इलाहाबादी
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