बैठे ठाले की तरंग ------------- पत्थर की हवेली है अन्दर से अकेली है जबान मुह में रख के अब तक न बोली है मासूम सी आखों से लगती भोली भोली है खुशबू उसके बदन की महके तो चंपा चमेली है यूँ तो मेले में हैं हँसी कई पर वह तो अलबेली है खिलखिला के हँसे तो लगे परियों की सहेली है
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