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Tuesday 19 June 2012

पत्थर की हवेली है

बैठे ठाले की तरंग -------------
पत्थर  की  हवेली है
अन्दर  से  अकेली है
जबान मुह में रख के
अब  तक  न बोली है
मासूम  सी  आखों से
लगती भोली भोली है
खुशबू  उसके बदन की
महके तो चंपा चमेली है 
यूँ तो मेले में हैं हँसी कई
पर वह तो अलबेली है
खिलखिला के हँसे तो
लगे परियों की सहेली है

मुकेश इलाहाबादी --------

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