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Tuesday 25 September 2012

तेरा जिक्र आता है,

 तेरा जिक्र आता है,
तो लब  खामोश  हो जाते हैं
और मै डूब जाता हूं
एक अंधे कुंए मे
जहां से कोई आवाज नही आती


अक्शर,शामे तन्हाई,
तेरा जिक्र छेड़ देती है
तब दिल खामोश होता है
आंसू जवाब देते हैं

तेरा जिक्र आता है,
तो, तेरी यादों की परछांई
लम्बी हो जाती हैं
और इतनी लम्बी,कि
मेरे वजूद से भी बडी हो जाती हैं

और ,,,,,
मै खो जाता हूं
स्याह परछाई मे
शायद ,
एक अधे कुंए मे
जहां से कोई आवाज नही आती

मुकेश इलाहाबादी ----------------                                                 

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