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Saturday, 8 September 2012

जुस्तजूं भी वही हो मंजिल भी वही हो


जुस्तजूं भी वही हो मंजिल भी वही हो
फिर तलाश क्यूँ किसी और शै की हो!
मुकेश इलाहाबादी ----------------------

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