एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Thursday, 6 September 2012
मुझे याद कर के,
कम अज कम
तुम हंस तो लेती हो,
कभी तुम रो भी लेती हो
यारों की महफ़िल में बैठ कर
हम - न तो
हंस ही सकते हैं न रो ही सकते हैं,
तेरी रुसवाई ना हो जाए - इसलिए
कम्बखत,
न चर्चा ऐ यार कर सकते हैं
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